Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
पयडिट्ठाणविहत्तीए कालो * एक्काबीसाए विहत्ती केवचिरं कालादो? जहण्णेण अंतोमुहुतं ।
६२७६. कुदो ? चउवीससंतकम्मिएण तिण्णि वि करणाणि काऊण खविददंसणमोहणीएण एकवीसमोहपयडीणमाहारत्तमुवगएण सव्वजहणतोमुहुत्तकालेण खवगसेढिमभुष्टिएण अटकसाएसु खविदेसु इगिवीस विहत्तीए जहण्णेणंतोमुहुत्तकालुवलंभादो।
___ * उक्कस्सेण तेतीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । - २८०. कुदो ? देवस्स गेरइयरस वा सम्माइटिरस चउबीस संतकम्मियरस पुच्चकोडाउअमणुस्सेसुवजिय गन्मादिअष्टवरसाणमुवरि दंसणमोहं खविय इगिवीसविहत्तीए आदि कादण पुवकोडिं सव्वसंजममणुपालेदूण कालं करिय तेत्तीससागरोवमाउए सु देवेसुप्पन्जिय पुणो अवसाणे कालं कादूण पुव्वकोडाउएसु मणुस्सेसु उववन्जिय सव्वजवेदका एक साथ क्षय करता हुआ नपुंसकवेदके क्षय होने के उपान्त्य समयमें ही स्त्रीवेदका क्षय कर देता है । इस प्रकार बारह प्रकृतिक स्थानके जघन्यकाल एक समयको छोड़ कर शेष तेरह और ग्यारह प्रकृतिक स्थानोंके जघन्य और उत्कृष्ट काल तथा बारह प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही प्राप्त होते हैं। ग्यारह विभक्तिस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल समान होता है या जघन्यसे उत्कृष्ट काल विशेषाधिक या संख्यातगुणा होता है। इस सम्बन्धमें अभी अधिक लिखनेके योग्य सामग्री नहीं प्राप्त हुई अतः यहां उस विषयमें कुछ नहीं लिखा है । इस विषय की चर्चा करते हुए यद्यपि वीरसेन स्वामीने पहले जघन्य कालसे उत्कृष्टकाल विशेष अधिक या संख्यातगुणा होना चाहिये ऐसा निर्देश किया है पर अन्तमें वे स्वयं आचार्य परम्परासे प्राप्त हुए उपदेशानुसार इसी नतीजेपर पहुंचनेकी प्रेरणा करते हैं कि दोनों काल समान होना चाहिये।
* इक्कीस प्रकृतिक स्थानका कितना काल है ? जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है।
२७६. शंका-इक्कीस प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त क्यों है ?
समाधान-चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक सम्यग्दृष्टि जीव तीनों करण करके और दर्शनमोहनीय का क्षय करके इक्कीस मोहप्रकृतियोंका स्वामी होता हुआ सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा क्षपकश्रेणीपर चढ़ कर आठ कषायोंका क्षय कर देता है। अतः इक्कीस प्रकृतिक स्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है।
* इक्कीस प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। ६२८०. शंका-ईकीस प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्टकाल साधिक तेतीस सागर क्यों है ?
समाधान-चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक देव या नारकी सम्यग्दृष्टि जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहां गर्भसे लेकर आठ वर्षके अनन्तर दर्शनमोहनीयका क्षय करके इक्कीस प्रकृतिक स्थानका स्वामी हुआ । अनन्तर शेष पूर्वकोटि काल तक सकल संयमका पालन करके और मर कर तेतीस सागरकी आयुवाले देवोंमें
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