Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
२४२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे .
[पयडिविहत्ती २
जीवके कोष्ठकके जो छह खाने दिये हैं उनमेंसे अन्तिम तीन खानोंसे जानी जाती है। यहां लोभका अश्वकर्णकरण,लोभकी तीन कृष्टिकरण और लोभकी तीन कृष्टियोंका क्षय, इस कालमेंसे दो समय कम दो आवली कम कर देनेपर एक विभक्ति स्थानका उत्कृष्टकाल प्राप्त होता है। दो विभक्तिस्थानका जघन्य काल क्रोध या मानके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके होता है यह बात ऊपरसे पांचवें नम्बरके प्रारम्भके दो खानोंसे जानी जाती है। वहां मायाकी तीन कृष्टियोंके क्षयका जो काल बतलाया है वही दो विभक्तिस्थानका जघन्य काल है। यद्यपि मायाके नवकबन्धका क्षय लोभ कृष्टिक्षयके कालमें होता है, अतः दो विभक्तिस्थानका दो समय कम दो आवलिकाल और कहना चाहिये था, पर मायाकृष्टि क्षयके काल में दो समय कम दो आवलिकाल तक मानके नवक बन्धका क्षय होता रहता है अत: यदि अन्तमें इतना काल बढ़ाया जाता है तो प्रारम्भमें उतनाही काल घटाना पड़ता है। इसलिये इस घटाने और बढ़ानेकी विधिको छोड़कर मायाकी तीन कृष्टियोंके क्षयका काल दो विभक्तिस्थानका जघन्य काल है ऐसा कहा । तथा जो जीव मायासंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ता है उसके दो विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल होता है । यह बात मायाके उदयसे क्षपकक्षेणीपर चढ़े हुए जीवके जो छह खाने दिये हैं उनमेंसे तीसरे, चौथे और पांचवें नम्बरके खानोंसे जानी जा सकती है। तीन विभक्तिस्थानका जघन्य काल क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके होता है। यह बात ऊपरसे प्रारम्भके चौथे खानेसे जानी जानी जा सकती है। विशेष कथन जिस प्रकार दो विभक्तिस्थानके जघन्य कालके कहते समय कर आये हैं उसी प्रकार यहां जानना । तथा तीन विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल मानसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके होता है। यह बात मानके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़े हुए जीवके जो छह खाने दिये हैं उनमेंसे प्रारम्भके दूसरे, तीसरे और चौथे खानेसे जानी जा सकती है। चार विभक्तिस्थानका जघन्यकाल स्त्रीवेदके विना शेष दो वेदोंमेंसे किसी एकके साथ मान, माया व लोभके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके होता है। यह बात प्रथम नम्बरके कोष्ठकके अन्तके तीन खानोंसे जानी जाती है। तथा चार विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल स्त्रीवेद और क्रोधके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके होता है यह बात क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके जो छह खाने दिये हैं उनमेंसे प्रारम्भके तीन खानोंसे जानी जाती है। यहां स्त्रीवेदके उदयकी प्रधानतासे उत्कृष्ट काल इसलिये कहा है कि ऐसे जीवके चारों कषायोंके अश्वकर्णकरणके कालमें पुरुषवेदके नवकबन्ध नहीं रहते। अतः अन्यवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवकी अपेक्षा स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके दो समय कम दो आवलि काल अधिक प्राप्त होता है। इसप्रकार एक, दो, तीन और चार विभक्तिस्थानोंका जघन्य व उत्कृष्ट काल जानना जाहिये ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org