Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे .
[पयडिविहत्ती २
दएण जो खवगसेटिं चडिदो सो कोधसंजलणोदयक्खवयस्स अस्सकणकरणकालम्मि दुसमयूणदोआवलियमेत्तकालं गंतूण पुरिसवेदणवकबंधं खवेदि, ताधे चउण्हं विहतिओ होदि । तदो कोधसंजलणं फद्दयसरूवेण खवमाणो माणोदयक्खवयस्स अस्सकण्णकरणकालभंतरे दुसमयूणदोआवलियमेत्तकालं गंतूण कोधसंजलणणवकबंधे खविदे जेण तिण्हं विहत्तिओ होदि, तेण कोधसंजलणस्स फद्दयसरूवेण खवणद्धा चदुण्हं विहत्तियस्स जहण्णकालो होदि । तस्सेव उक्कस्सकालो वुच्चदे । तं जहा-इत्थिवेदकोधोदएण जो खवगसेढिं चडिदो सो सवेदियचरिमसमए पुरिसवेदबंधगो होदूण तदो अंतोमुहुसमुवरि गंतूण पुरिसवेदेण सह छण्णोकसाएसु खीणेसु जेण चत्तारि विहत्तिओ होदि तेण कोधोदयक्खवगस्स अस्सकण्णकरणकालो किट्टीकरणकालो किट्टीवेदयकालो च दुसमयणदोआवलियब्भहिओ चउण्हं विहत्तियरस उक्कस्सद्धा। श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके क्रोधसंज्वलनके अश्वकर्णकरणका जो काल है उसमें दो समयकम दो आवली प्रमाण कालके जानेपर पुरुषवेदके नवकबन्धका क्षय करता है। तब जाकर चार प्रकृतिरूप स्थानका स्वामी होता है। तदनन्तर क्रोधसंज्वलनका स्पर्धकरूपसे क्षय करता हुआ वह जीव चूंकि मानके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके अश्वकर्णकरणके कालमें दो समय कम दो आवली प्रमाण काल के व्यतीत होनेपर क्रोधसंज्वलनके नवकबन्धका भय करके तीन प्रकृतिक स्थानका खामी होता है इसलिये क्रोधसंज्वलनके स्पर्धकरूपसे क्षय होनेका जो काल है वह चार प्रकृतिक स्थानका जघन्य काल है। . अब इसी चार प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्टकाल कहते हैं । वह इसप्रकार है-जो जीव स्त्रीवेद और क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा है वह सवेदभागके चरम समयमें पुरुषवेदका बन्धक होकर अन्तर्मुहूर्त बिताकर पुरुषवेदके साथ छह नोकषायोंके क्षीण हो जानेपर चूंकि चार प्रकृतिक स्थानका स्वामी होता है इसलिये क्रोधके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके अश्वकर्णकरणकाल, कृष्टिकरणकाल और दो समयकम दो आवलियोंसे अधिक कृष्टिवेदककाल यह सब मिलाकर चार प्रकृतिरूप स्थानका उत्कृष्ट काल होता है।
विशेषार्थ-एक, दो, तीन और चार विभक्तिस्थानोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल किस प्रकार प्राप्त होता है इस विषयका ठीक तरहसे ज्ञान करानेके लिये नीचे कोष्ठक दिया जाता है। इससे दो बातें जानी जाती हैं। एक तो यह कि किस कषायके उदयके साथ क्षपकश्रेणी पर चढ़े हुए जीबके चार कषायोंकी क्षपणा किस प्रकार होती है। और दूसरी यह कि किसी एक कषायके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके जिस समय अमुक क्रिया होती है उसी समय दूसरी कषायके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके कौनसी क्रिया होती है। .
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