Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
पयडिट्ठाणविहत्तीए कालो खवगसेढिं चडिदस्स जो माणतिण्णिकिट्टीवेदयकालो दुसमयूणदोआवलियपरिहीणो मायासंजलणतिण्णिकिट्टीवेदयकालो लोभपढमविदियबादराकिट्टीणं सुहुमकिडीए च जो वेदयकालो सो एकिस्से वित्तियस्स उक्कस्सकालो होदि । जहण्णकालादो उक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तभावेण सारिसो होदूण संखेजगुणो । ___ * एवं दोण्हं तिण्हं चदुण्हं विहत्तियाणं ।
६२७०.जथा एक्किस्से विहत्तियस्स जहण्णुक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तं तहा एदेसिपि जहण्णुकस्सकालो अंतोमुहुतं चेव । तं जहा-दोण्हं विहतियस्स ताव उच्चदे, कोधोदएण खवगसेटिं चडिय माणतिण्णिकिट्टीओ खवेमाणो मायाए पढमकिट्टीवेदयकालमंतरे दुसमयूणदोआवलियमेत्तकालं गंतूण माणणवकबंधं खवेदि से काले दोण्हं विहत्तिओ होदि । पुणो मायासंजलणपढमावदियतदियकिट्टीओ खवेमाणो मायासंजलणणवकबंध लोभसंजलणपढमकिहीवेदगकालभंतरे दुसमयणदोआवलियमेत्तकालं गंतूण खवेदि तेण मायासंजलणतिण्णिकिट्टीवेदयकालो सयलो दोण्हं विहतियस्स जहण्णकालो होदि । दोण्हं कम दो आवलियोंसे न्यून मानकी तीन कृष्टियोंका जो वेदक काल है और माया संज्वलनकी तीन कृष्टियोंका जो वेदक काल है, और लोभसंज्वलनकी पहली और दूसरी बादरकृष्टियोंका तथा सूक्ष्मकृष्टिका जो वेदक काल है वह सब लोभके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके एक प्रकृतिरूप स्थानका उत्कृष्ट काल होता है। एक प्रकृतिरूप स्थानके जघन्यकालसे उसीका उत्कृष्ट काल सामान्यकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त होता हुआ भी संख्यातगुणा है अर्थात् अन्तर्मुहूर्त सामान्यकी अपेक्षा दोनों काल समान हैं फिर भी जघन्यकालसे उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है।
* इसीप्रकार दो, तीन और चार प्रकृतिक सच्चस्थानोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
$२७०.जिस प्रकार एक प्रकृतिकस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कहा है उसीप्रकार इन स्थानोंका भी जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त समझना चाहिये । वह इस प्रकार है। उसमें पहले दो प्रकृतिक स्थानका जघन्य और उत्कृष्टकाल कहते हैं-क्रोधके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़नेवाला जीव मानसंज्वलनकी तीन कृष्टियोंका क्षय करता हुआ मायाकी पहली कृष्टिके वेदन करनेके कालमेंसे दो समय कम दो आवलीप्रमाण कालके व्यतीत होनेपर संज्वलनमानके नवक समयप्रबद्धका क्षय करता है और इसप्रकार यह जीव दो प्रकृतिरूप स्थानका स्वामी होता है। पुनः मायासंज्वलनकी पहली, दूसरी और तीसरी कृष्टिका क्षय करता हुआ लोभसंज्वलनकी पहली कृष्टिके वेदन करनेके कालमेंसे दो समय फम दो आवली प्रमाण कालके जानेपर मायासंज्वलनके नवक समयप्रबद्धका क्षय करता है। अतः माया संम्वलनकी तीन कृष्टियोंका समस्त वेदककाल दो प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल
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