Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] पयडिट्ठाणविहत्तीए कालो
२३५ छण्णोकसायचरिमफालिं च सव्वसंकमेण कोधसंजलणम्मि संकामेदि । तदो सवेदियचरिमसमयप्पहुडि समयूणदोआवलियमेत्तकालं पंचविहत्तिओ होदि । से काले अवेदओ होण अस्सकण्णकरणं करेमाणो पुरिसवेदणवकबंधं खवेदि । तम्मि खीणे चत्तारि विहत्तिओ होदि । तदो उवरिमंतोमुहुत्तं गंतूण अस्सकण्णकरणे समत्ते चदुण्हं संजलणाणमेकेकिस्से संजलणाए तिण्णि तिण्णि बादरकिट्टीओ अंतोमुहुत्तकालेण करेदि। तदो किड्डीकरणे समते कोधसंजलणस्स तिण्णि किट्टीओ जहाकमेण खवेदि। कोधसंजलणे खविदे तिण्हं विहत्तिओ होदि। तदोजहाकमेण अंतोमुहुत्तकालेण माणसंजलणतिण्णि किडीओ खवेदि । ताघे दोण्हं विहत्तिओहोदि । तदो अंतोमुहुत्तेण कालेण मायासंजलणतिणिकिडीओ खवेमाणो लोभसंजलणपढमकिट्टीए अब्भंतरे दुसमयणदोआवलियमेत्तकालं गंतूण खवेदि । तम्मि खीणे एक्किस्से विहत्तिओ होदि । तदोजहाकमेण दुसमयूणदोआवलियमेत्तकालेणूणो लोभपढमविदियबादरकिट्टीओ लोभसुहुमकिट्टीओ च खवेपुरुषवेदके सत्ता में स्थित पुराने कमाकी और छह नोकषायोंकी अन्तिम फालिका सर्वसंक्रमके द्वारा क्रोध संज्वलनमें संक्रमण करता है। तदनन्तर वेदका अनुभव करने वाला वह जीव सवेदभागके चरम समयसे लेकर एक समय कम दो आवली कालतक पुरुषवेद और चार संज्वलन इन पांच प्रकृतियोंकी सत्तावाला होता है। इसप्रकार सवेद अनिवृत्तिकरणके अनन्तर अवेद अनिवृत्तिकरणके कालमें अवेदक होकर अश्वकर्ण करणको करता हुआ पुरुषवेदके नवकबन्धका एक समयकम दो आवली प्रमाण कालके द्वारा क्षय करता है। इसप्रकार पुरुषवेदके क्षीण हो जानेपर यह जीव चार प्रकृतियोंकी सत्तावाला होता है। अन्तर्मुहूर्त प्रमाणकाल बिताकर अश्वकर्णकरणके समाप्त हो जानेपर अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा चारों सज्वलन कषायोंमेंसे एक एक संज्वलनकी तीन तीन बादरकृष्टियां करता है। इसप्रकार कृष्टिकरणके समाप्त हो जानेपर क्रोधसंज्वलनकी तीनों कृष्टियोंका यथाक्रमसे क्षय करता है। इसप्रकार क्रोधसंज्वलनके क्षीण हो जानेपर यह जीव तीन प्रकृतियोंकी सत्तावाला होता है तदनन्तर अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा मानसंज्वलनकी तीनों कृष्टियोंका यथाक्रमसे क्षय करता है। इसप्रकार मानसंज्वलनके क्षीण होजानेपर उस समय यह जीव दो प्रकृतियोंकी सचावाला होता है। तदनन्तर अन्तर्मुहूर्तकालके द्वारा मायासंज्वलनकी तीन कृष्टियोंका क्षय करता हुआ लोभसंज्वलनकी पहली कृष्टिके भीतर दो समय कम दो आवलीमात्र कालको व्यतीत करके उनका क्षय करता है । इसप्रकार मायासंज्वलनके क्षीण हो जाने पर यह जीव केवल एक लोभप्रकृतिकी सत्तावाला होता है। तदनन्तर लोभकी पहली
और दूसरी बादर कृष्टिका तथा लोभकी सूक्ष्मकृष्टियोंका यथाक्रमसे क्षय करते हुए इस जीवको लोभप्रकृतिके क्षय करनेमें जितना काल लगता है उसमेंसे दो समयकम दो आवलीप्रमाण कालके कम कर देनेपर जो काल शेष रहता है वह एक प्रकृतिरूप स्थानका
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