Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिविहती २ देसघादि करेदि । तदो उवरि अंतोमुहुत्तं गंतूण आभिाणवोहियणाणावरणीय-परिमोगंतराइयाणं सव्वघादिबंधं देसघादि करेदि । तदो उवरि अंतोमुहुर्त गंतूण विरियंतराइयसव्वघादिबंधं देसघादि करेदि । तदो उवरि अंतोमुहुत्तं गंतूण चदुसंजलण-णवणोकसायाणं तेरसण्हं कम्माणमंतरं करेदि, ण अण्णेसि; तेसिं चारित्तमोहत्ताभावादो। अंतरं करेमाणो पुरिसवेद-कोधसंजलणाणं पढमष्ठिदिमतोमुहुत्तपमाणं मोत्तूण अंतरं करेदि, सेसएकारसण्हं कम्माणमुदयावलि मोतूण । तदो कदंतरबिदियसमए मोहणीयस्स आणुपुब्विसंकमो लोभस्स असंकमो मोहणीयस्स एगहाणिओ बंधो एगहाणिओ उदओ णqसयवेदस्स आउत्तकरणसंकामओ सव्वकम्माणं छसु आवलियासु गदासु उदीरणा सव्वमोहणीयस्स संखेज्जवस्सहिदिओ बंधो त्ति एदाणि सत्तकरणाणि जुगवं पारभदि । कयंतरविदियसमयप्पहुडि णqसयवेदं खवेमाणो अंतोमुहुतं गंतूण खवेदि । से काले इत्थिवेदक्खवणं पारमिय तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तं पि खविजमाणं खवेदि । एदेसिं दोण्हं पि कम्माणं खवणकालो पढमहिदीए संखेजा भागा । तदो इत्थिवेदे खीणे सत्तणोकसाए अंतोमुहुत्तकालेण खवेमाणो सवेददुचरिमसमए पुरिसवेदचिराणसंतकम्म वरणके सर्वघाति बन्धको देशघातिरूप करता है। इसके अनन्तर अन्तर्मुहूर्त बिताकर मतिज्ञानावरण और परिभोगान्तरायके सर्वघातिबन्धको देशघातिरूप करता है। इसके अनन्तर अन्तर्मुहूर्त बिताकर वीर्यान्तरायके सर्वघातिबन्धको देशघातिरूप करता है । इसके अनन्तर अन्तर्मुहूर्त बिताकर चार संज्वलन और नौ नोकषाय इन तेरह काँका अन्तर करता है और दूसरे कर्मोंका अन्तर नहीं करता, क्योंकि और दूसरे कर्म चारित्रमोहनीयके भेद नहीं हैं । उक्त तेरह प्रकृतियोंका अन्तर करते समय पुरुषवेद और क्रोध संज्वलनकी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण प्रथम स्थितिको छोड़कर ऊपरके निषेकोंका अन्तर करता हैं। और अनु. दयरूप शेष ग्यारह कर्मोंकी उदयावलि प्रमाण प्रथम स्थितिको छोड़कर ऊपरके निषकोंका अन्तर करता है।
तदनन्तर अन्तर करनेके दूसरे समयमें क्षपक जीव मोहनीयका आनुपूर्वी क्रमसे संक्रम, लोभका असंक्रम, मोहनीयका एकस्थानिक बन्ध, मोहनीयका एक स्थानिक उदय, नपुंसक वेदका आवृत्तकरण संक्रम, समस्त कर्मोंकी छह आवलीके अनन्तर ही उदीरणाका होना और समस्त मोहनीयका संख्यात हजार वर्ष प्रमाण स्थितिबन्ध इन सात करणोंको एक साथ प्रारंभ करता है। फिर अन्तर करनेके दूसरे समयसे लेकर नपुंसकवेदका क्षय करता हुआ अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कालमें उसका क्षय करता है। उसके अनन्तर स्त्रीवेदकी क्षपणाका प्रारंभ करके अन्तर्मुहूर्त कालमें उसका भी क्षय करता है। इन दोनों ही कर्मोंका क्षपणाकाल प्रथमस्थितिका संख्यात बहुभाग प्रमाण है। इसप्रकार स्त्रीवेदके क्षय हो जाने पर अन्तमुहूर्त कालके द्वारा शेष सात नोकषायोंका क्षय करता हुआ सवेद भागके द्विचरम समयमें
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