Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवनासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ कस्स ? अण्ण मणुस० मणुस्सिणीए वा । वावीसविहती कस्स ? अण्ण. दुगइलक्खीणदंसणमोहणीयस्स । अभवसिद्धि० छच्चीसविह. कस्स ? अण्ण । .... ६२६७.खइयस्स एकवीसविह. कस्स ? अण्ण० चउगइसम्माइहिस्स । सेसमोषभंगो । वेदगसम्माइडिस्स अट्ठावीस-चउवीसविह० कस्स ? अण्ण चउगइसम्माइहिस्स। तेवीसविह० कस्स?मणुस्सस्स मणुस्सिणीए वा । वावीसविह० कस्स? अण्ण० चउगइसम्माइहिस्स अक्खीणदसणमोहणीयस्स | उवसम० अष्ठावीसविह० कस्स ? अण्ण० चउग्महसम्माइहिस्स। चउवीसविह० कस्स ? अण्ण. चउग्गइसम्माइहिस्स विसंजोइदाणंताणुबंधिचउक्कस्स । सासण. अहावीसविह. कस्स ? अण्ण० चउगइसासणसम्माइहिस्स । सम्मामि० अहावीस-चउवीसविह० कस्स ? अण्ण चउगइसम्मामिच्छाइहिस्स। अणाहारि० कम्मइयभंगो।
___ एवं सामित्तं समत्तं । करना चाहिये । तेईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने मिथ्यात्वका क्षय कर दिया है ऐसे किसी भी मनुष्य या मनुष्यनीके होता है। बाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयका पूरा क्षय नहीं किया है ऐसे मनुष्य और देवगतिके किसी भी जीवके बाईस विभक्तिस्थान होता है। अभव्योंमें छब्बीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी अभव्यके होता है।
६२६७.क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? चारों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टिके होता है । क्षायिकसम्यग्दृष्टिके शेष स्थान ओघके समान समझना चाहिये । वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? चारों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टिके होते हैं। तेईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? मनुष्य या मनुष्यनीके होता है । बाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयका पूरा क्षय नहीं किया ऐसे चारों गतियोंके किसी भी कृत्यकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। उपशमसम्यग्दृष्टियों में अट्ठाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? चारों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टिजीवके होता है। चौबीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना कर दी है, ऐसे चारों गतिके किसी भी उपशमसम्यग्दृष्टिजीवके होता है । सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? चारों गतिके किसी भी सासादनसम्यग्दृष्टिके होता है। सम्यमिथ्यादृष्टियोंमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? चारों गतिके किसी भी सम्यमिथ्यादृष्टि जीवके होते हैं। कार्मणकाययोगियोंके स्थानोंका जिसप्रकार कथन कर आये हैं उसीप्रकार अनाहारक जीवोंके समझना चाहिये। ४. इसप्रकार स्वामित्वानुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
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