Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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trader हिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहती २
९ २३२. आभिणि० - सुद० - ओहि० ओघभंगो । णवरि सत्तावीस - छब्बीसट्टाणाणि णत्थि । एवं मणपजव० संजद ० - सामाइयछेदो ० - ओहिदंसण- सम्मादिहि त्ति वत्तव्यं । परिहार • अत्थि अट्ठावीस - चउवीस तेवीस-बावीस-एक्कवीस पयडिट्ठाणाणि । एवं संजदासंजद० |
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१२३३. लेस्साणुवादेण काउलेस्सा • वेउच्वियकायजोगिभंगो। णवरि, बावीसपयडिद्वाणं पि अस्थि । तेउ०- पम्म० असंजद ० अत्थि अट्ठावीस सत्तावीस छब्बीस - चउवीसतेवीस-बावीस-एक्कवीसपयडिद्वाणाणि | अभवसिद्धि ० अत्थि छब्बीसपयडिद्वाणं ।
१२३४. खइयसम्माइडी ० अत्थि एक्कवीस-तेरस - बारस-एक्कारस- पंच- चत्तारि-तिष्णिदोणि- एगपय डिट्ठाणाणि । वेदगसम्माइही० श्रत्थि अट्ठावीस - चउवीस-तेवीस-बावीसपयद्वाणाणि । उवसम० अत्थि अट्ठावीस चउवीस ०द्वाणाणि । एवं सम्मामि० । सासण• अस्थि अट्ठावीसाए द्वाणं ।
एवं समुत्तिणा समत्ता ।
१२३२. मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके ओघके समान स्थान होते हैं । इतनी विशेषता है कि इनके सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिरूप स्थान नहीं होते । इसीप्रकार मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । परिहारविशुद्धिसंयतोंके अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान होते हैं । इसीप्रकार संयतासंयतोंके कहना चाहिये ।
१२३३. लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कापोतलेश्यावाले जीवोंके वैक्रियिककाययोगी जीवोंके समान सत्त्वस्थान होते हैं । इतनी विशेषता है कि इनके बाईस प्रकृतिरूप स्थान भी पाया जाता है । तेजोलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और असंयत जीवोंके अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस, तेईस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान होते हैं। अभव्य जीवोंके छब्बीस प्रकृतिरूप स्थान होता है।
विशेषार्थ - प्रथम नरकके नारकियों के और अविरतसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंके अपर्याप्त अवस्था में कापोत लेश्या होती है । अतः कापोतलेश्यामें २२ प्रकृतिरूप स्थान बन जाता है । शेष कथन सुगम है ।
१२३४. क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंके इक्कीस, तेरह, बारह, ग्यारह, पांच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिरूप स्थान होते हैं । वेदकसम्यग्दृष्टियोंके अट्ठाईस, चौबीस, तेईस और बाईस प्रकृतिरूप स्थान होते हैं । उपशम सम्यग्दृष्टियोंके अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिरूप स्थान होते हैं । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके भी उक्त दो स्थान जानना चाहिये | सासादन सम्यदृष्टियों के एक अट्ठाईस प्रकृतिरूप स्थान होता है ।
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