Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] पयडिट्ठाणविहत्तीए अहियारणामणिदेसो - १२३५.संपहि समुकित्तणं मणिय चुण्णिसुत्ताइरिएण सूचियाणं उच्चारणाइरिएण समुकित्तणा सादि० अणादि० धुव० अद्भुव० एगजीवेण सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ भागाभागो परिमाणं खेत्तं पोसणं कालो अंतरं भावो अप्पाबहुअं भुजगारो पदणिक्खेवो वड्ढि ति उदिहाणमहियाराणं परूवणाए कीरमाणाए ताव चुण्णिसुत्त सूइदअत्याहियाराणमुच्चारणाइरियस्स उच्चारणं भणिस्सामो। तं जहा-सादि-अणादि-धुवअद्धवाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण छव्वीसाए हाणं किं सादियं किमणादियं किंधुवं किमद्धवं वा ? सादियं वा अणादियं वा धुवं वा अद्धवं वा । सेसाणि हाणाणि सादि-अर्द्धवाणि । एवं मदि-सुदअण्णाण-असंजद-अचक्खु०
विशेषार्थ-उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके २३ और २२ प्रकृतिरूप स्थानोंके नहीं कहनेका कारण यह है कि उपशमसम्यग्दृष्टि जीव दर्शनमोहनीयकी क्षपणाका प्रारम्भ नहीं करते हैं। तथा उपशमसम्यग्दृष्टियोंके समान सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके भी २८ और २४ ये दो स्थान होते हैं। ऐसा कहनेका यह अभिप्राय है कि यद्यपि मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त कर सकता है तथापि जिसने सम्यक्प्रकृतिकी उद्वेलना कर दी है ऐसा २७ विभक्तिस्थानवाला जीव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको नहीं प्राप्त होता। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायमें प्रचलित कर्मप्रकृतिमें बतलाया है कि सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानमें २८, २७ और २४ ये तीन विभक्तिस्थान होते हैं। इससे यह निश्चित होता है कि कर्मप्रकृतिके अभिप्रायानुसार २७ विभक्तिस्थानवाला जीव भी सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त हो सकता है । शेष कथन सुगम है।
इस प्रकार प्रकृतिस्थान समुत्कीर्तना समाप्त हुई। ६३२५.इस प्रकार समुत्कीर्तनाका कथन करके चूर्णिसूत्रकार यतिवृषभ आचार्य के द्वारा सूचित किये गये और उच्चारणाचार्यके द्वारा कहे गये समुत्कीर्तना, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल और अन्तर तथा नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व,भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि इन अधिकारोंकी प्ररूपणा करते समय पहले चूर्णिसूत्रके द्वारा सूचित किये गये अधिकारोंकी उच्चारणाचायके द्वारा कही गई उच्चारणावृत्तिको कहते हैं। वह इस प्रकार है____सादि, अनादि, ध्रुव और अधुवानुगमकी अपेक्षा ओघ और आदेशके भेदसे निर्देश दो प्रकारका है। उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा छब्बीस प्रकृतिरूप स्थान क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है क्या अध्रुव है ? छब्वीस प्रकृतिरूप स्थान सादि भी है, अनादि भी है, ध्रुव भी है और मध्रुव भी है। इस स्थानको छोड़कर शेष सभी स्थान सादि और अध्रुव हैं। इसीप्रकार मतिअज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, मिथ्या
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