Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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धवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहती २
अण्णदरस्स । एवं मणुसअप ० पंचिंदिय अपज० तसअप ० - सव्व एइंदिय- सव्वविगलिंदिय- सव्वपंचकाय - असण्णि-मदि-सुदअण्णाणि विहंग भिच्छाइट्ठी त्ति वत्तब्वं ।
२५३. मणुसगईए मणुसपञ्जत- मणुसिणीणं मूलोघभंगो। एवं पंचमणजे गिपंचवविजोग - ओरालियकायजोगि त्ति वत्तव्वं । सुक्कलेस्साए वि मणुसमहभंगो । बरि, वावीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स देवस्स मणुस्सस्स वा अक्खीणदंसणमोहणीयस्स । णिरय - तिरिक्खेसु णत्थि । अणुद्दिसादि जाव सव्वट्टे ति अट्ठावीसचवीस-एक्कवीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स० । वावीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स अक्खीणदंसणमोहणीयस्स |
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विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी एक लब्धपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचके होते हैं । इसी प्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, त्रस लब्ध्यपर्याप्त सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, सभी पांचों स्थावर काय, असंज्ञी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी और मिध्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । आशय यह है कि उक्त मार्गणावाले जीव मिध्यादृष्टि ही होते हैं और मिध्यादृष्टियों के २८, २७ और २६ ये तीन सत्त्वस्थान पाये जाते हैं, अतः यहाँ ये तीन सवस्थान कहे हैं ।
$ २५३. मनुष्य गतिमें सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनीके मूलोचके समान भंग कहना चाहिये। इसी प्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों बचनयोगी और औदारिक काययोगी जीवोंके कहना चाहिये । शुक्ल लेश्या में भी मनुष्य गतिके समान स्थान होते हैं । इतनी विशेषता है कि शुक्ल लेश्यामें बाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयकी सम्यकत्व प्रकृतिका पूरा क्षय नहीं किया है ऐसे किसी एक देव या मनुष्य के बाईस विभक्ति स्थान होता है । नारकी और तिर्यंच जीवोंके बाईस विभक्ति स्थान नहीं होता । तात्पर्य यह है कि मनुष्य गतिको छोड़कर अन्य गतियोंमें बाईस विभक्ति स्थान निरृत्यपर्याप्त अवस्थामें ही पाया जाता है और देवोंको छोड़कर उत्तम भोगभूमिके तिथंच तथा पहले नरकके नारकियोंके अपर्याप्त अवस्था में कापोत लेश्या ही होती है, अतः यहाँ शुक्ल लेश्याके साथ तिर्यंच और नारकियोंके बाईस विभक्ति स्थानका निषेध किया है। शेष कथन सुगम है ।
अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अट्ठाईस, चौबीस और इक्की विभक्ति स्थान किसके होते हैं ? किसी भी देवके होते हैं । बाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयकी सम्यकत्व प्रकृतिका पूरा क्षय नहीं किया है ऐसे किसी भी देवके होता है । आशय यह है कि ये देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं इस लिये इनके २८, २४, २२ और २१ ये चार सस्वस्थान ही पाये जाते हैं । २७ और २६ सत्वस्थान नहीं पाये जाते
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