Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदें कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ वा । सत्तावीस-छव्वीसवि० कस्स ? देव-णेरइयमिच्छाइहिस्स । चउवीस-एकवीसविह० कस्स ? देव-णेरइयसम्माइटिस्स । वावीसविहत्ती णस्थि । एवं वेउग्वियमिस्सकायजोगीसु वत्तव्वं । णवरि, वावीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स देव-णेरइयसम्माइहिस्स अक्खीणदंसणमोहणीयस्स । - २५६. आहार-आहारमिस्स० अठ्ठावीस-चउवीसविहत्ती कस्स ? अण्ण. वेदयसम्माइटिस्स । एकवीसविहत्ती कस्स ? अण्ण० खइयसम्माइटिस्स । - $२५७. कम्मइय० अट्ठावीसविह० कस्स ? अण्णदरस्स चउगइमिच्छादिहिस्स देव-मणुस्ससम्माइहिस्स वा । सत्तावीस-छव्वीसविहत्ती कस्स ? अण्ण० चउगइमिच्छाया सम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीवोंके होता है । सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं? मिथ्यादृष्टि देव और नारकी जीवोंके होते हैं। चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं । सम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीवोंके होते हैं। यहां बाईस विभक्तिस्थान नहीं पाया जाता है। इसीप्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें बाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयका पूरा क्षय नहीं किया है ऐसे किसी भी कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीवके होता है।
विशेषार्थ-वैक्रियिक काययोगमें २२ प्रकृतिक सत्त्वस्थानके नहीं पाये जानेका कारण यह है कि यह सत्त्वस्थान मरकर अन्य गतिको प्राप्त हुए जीवके अपर्याप्त अवस्थामें ही होता है और अपर्याप्त अवस्थामें वैक्रियिककाययोग नहीं होता। यही सबब है कि वैक्रियिक काययोगमें २२ प्रकृतिक सत्त्वस्थानका निषेध करके वैक्रियिक मिश्रकाययोगमें उसे बतलाया है। शेष कयन सुगम है।
६२५६. आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? किसी भी वेदकसम्यग्दृष्टि प्रमत्त संयत जीवके होते हैं । इक्कीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्त संयतके होता है। ... विशेषार्थ-आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग प्रमत्तसंयतके होते हैं। यद्यपि प्रमत्तसंयतके और भी सत्त्वस्थान पाये जाते हैं पर ऐसा जीव क्षायिक सम्यक्त्वकी प्राप्तिका प्रारम्भ नहीं करता इसलिये उसके वेदक और क्षायिक सम्यक्त्वकी अपेक्षा तीन ही सस्वस्थान बतलाये हैं। - २५७. कार्मणकाययोगमें अट्ठाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? चारों गतिके किसी मी मिध्यादृष्टि जीवके और सम्यग्दृष्टि देव तथा मनुष्यके होता है। सत्ताईस
और छब्बीस विभक्तिस्थान किसके होते हैं ? चारों गतियोंके किसी भी मिथ्यादृष्टि जीवके होते हैं। चौबीस विभक्तिस्थान किसके होता है ? दोनों गतियोंके किसी भी सम्यग्दृष्टि
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