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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [पयडिविहत्ती २ ६२२६.आदेसेण णिरयगईए णेरइएसु अत्थि अष्टावीस-सत्तावीसछव्वीस-चउवीस. वावीस-एकवीसाए हाणं । एवं पढमाए पुढवीए, तिरिक्खगइ० पचिंदियातरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्ज०-देव-सोहम्मीसाणादि जाव उवरिमगेवज०-वेउव्वियमिस्स०-ओरालियमिस्स-कम्मइय-अणाहारि त्ति वत्तव्वं । विदियादि जाव सत्तमि त्ति एवं चेव वत्तव्वं । गवरि वावीस-एकवीसपयडिहाणाणि णत्थि । एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणि-भवण.. वाण-जोदिसिय० वत्तव्यं । पंचिंदियतिरिक्खअपज० अत्थि अहावीस-सत्तावीसछव्वीसपयाडिठाणाणि । एवं मणुसअपज्ज०-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज०-सव्वपंचकाय-तस०अपञ्ज०-मदि-सुदअण्णाणि-विहंग-मिच्छादिष्टि-असण्णि त्ति वत्तव्वं । अणुद्दिसादि जाव सबढ० अत्थि अहावीस-चउवीस-बावीस-एकवीसपयाडहटाणाणि । वेउब्वियकायजोगीसु अत्थि अट्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस-चउवीस-एक्कवीसपयडिहाणाणि । एवं किण्ह०-गील वत्तव्वं । आहारक०-आहारामिस्सकायजोगीसु अत्थि अट्ठावीस-चउवीस-एकवीसपयडिट्ठाणाणि । ___६२२६.आदेशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिरूप छह स्थान पाये जाते हैं। इसीप्रकार पहले नरकमें समझना चाहिये । इसी प्रकार तिथंचगति में सामान्य तिथंच, पंचेन्द्रिय तिथंच और पंचेन्द्रिय तिथंच पर्याप्त तथा सामान्य देव, सौधर्म स्वर्गसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देव, वैक्रियकमिश्रकाययोगी औदारिकमिश्रकाययोगी कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंके कहना चाहिये । दूसरे नरकसे लेकर सातवें नरक तक इसीप्रकार कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके पूर्वोक्त स्थानोंमेंस बाईस और इक्कीस प्रकृतिक स्थान "हीं पाये जाते हैं। इसीप्रकार पंचेन्द्रियतिथंच योनिमती, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके कहना चाहिये।
विशेषार्थ-दूसरे नरकसे लेकर उक्त सभी मार्गणाओंमें सम्यग्दृष्टि जीव मर कर नहीं उत्पन्न होते हैं, अतः इन मार्गणाओमें २२ और २१ प्रकृतिरूप स्थान किसी प्रकार भी सम्भव नहीं हैं। शेष कथन सुगम है।
पंचेन्द्रियतिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकोंके अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान होते हैं। इसीप्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, लब्ध्यपर्याप्तक पंचेन्द्रिय, बादर सूक्ष्म आदि सभी पांचों स्थावरकाय, सलब्ध्यपर्याप्त, मत्यज्ञानी. श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके कहना चाहिये ।
अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंके अट्ठाईस, चौबीस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान होते हैं। वैक्रियिककाययोगियोंके अठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस और इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान होते हैं। इसीप्रकार कृष्णलेश्यावाले और नीललेश्यावाले जीवोंके कहना चाहिये । आहारककाययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंके अट्ठाईस,
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