________________
१६८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ चउक० अविह० विसे० । तस्सेव विह० अणंतगुणा । मिच्छत्त० विह० विसे । बारसक०-णवणोक० विह० विसे० । सम्मामि० अविह० विसे० । सम्मत्त० अविह. विसे ।
एवमप्पाबहुगं समतं ।
॥ एवमेगेग-उत्तरपयडिविहत्ती समत्ता ॥ नोकषायोंकी अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे उसीकी विभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं ।
___ इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। इस प्रकार एकैक उत्तरप्रकृतिविभक्ति समाप्त हुई।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org