________________
गा० २२ ]
उत्तरपयडिविहत्तीए अप्पाबहुप्राणुगमो
१६७
अविह० विसे० । माणसंजल० अविह० विसे । कोधसंज०अविह० विसे० । पुरिस० अविह० विसे। छण्णोक० अविह. विसे० । इत्थि० अविह० विसे० । णqसय० अविह. विसे । अहक० अविह० विसे । सम्मत्त अविह. विसे । सम्मामि० अविह विसे० । मिच्छत्त अविह० विसे० । अणंताणु० चउक्क० अविह. विसे० । एवं खइयसम्माइटीसु । णवरि, अहकसायादि कायव्वं । वेदगसम्मा० सव्वत्थोवा सम्मामि० अविह० | मिच्छत्त अविह० विसे० । अणंताणु०चउक्क० अविह० असंखेजगुणा । तस्सेव विह० असंखेजगुणा । मिच्छत्त विह. विसे । सम्मामि०विह० विसे । सम्मत्त-बारसक०-णवणोक० विह० विसे० । उवसमसम्मा० सव्वत्थोवा अणंताणु० चउक० अविहः। तस्सेव विह. असंखेज्जगुणा । चउवीसंपय० विह० विसे० । एवं सम्मामि ।
२०६. अणाहार० सव्वत्थोवा सम्मत्त विह० । सम्मामि० विह. विसे । बारसक०-णवणोक० अविह० अणंतगुणा । मिच्छत्त० अविह० विसे० । अणंताणु०क्रोधसंज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे पुरुषवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे छह नोकषायोंकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे स्त्रीवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे नपुंसकवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे आठ कषायोंकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके आठ कषायोंकी विभक्तिवालोंको आदि लेकर कहना चाहिये । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे उसीकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यक्प्रकृति, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे उसीकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे चौबीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये।
२०६. अनाहारक जीवोंमें सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक है। इनसे बारह कषाय और नौ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org