Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपयडिविहत्तीए अप्पाबहुप्राणुगमो
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अविह० विसे० । माणसंजल० अविह० विसे । कोधसंज०अविह० विसे० । पुरिस० अविह० विसे। छण्णोक० अविह. विसे० । इत्थि० अविह० विसे० । णqसय० अविह. विसे । अहक० अविह० विसे । सम्मत्त अविह. विसे । सम्मामि० अविह विसे० । मिच्छत्त अविह० विसे० । अणंताणु० चउक्क० अविह. विसे० । एवं खइयसम्माइटीसु । णवरि, अहकसायादि कायव्वं । वेदगसम्मा० सव्वत्थोवा सम्मामि० अविह० | मिच्छत्त अविह० विसे० । अणंताणु०चउक्क० अविह० असंखेजगुणा । तस्सेव विह० असंखेजगुणा । मिच्छत्त विह. विसे । सम्मामि०विह० विसे । सम्मत्त-बारसक०-णवणोक० विह० विसे० । उवसमसम्मा० सव्वत्थोवा अणंताणु० चउक० अविहः। तस्सेव विह. असंखेज्जगुणा । चउवीसंपय० विह० विसे० । एवं सम्मामि ।
२०६. अणाहार० सव्वत्थोवा सम्मत्त विह० । सम्मामि० विह. विसे । बारसक०-णवणोक० अविह० अणंतगुणा । मिच्छत्त० अविह० विसे० । अणंताणु०क्रोधसंज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे पुरुषवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे छह नोकषायोंकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे स्त्रीवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे नपुंसकवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे आठ कषायोंकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके आठ कषायोंकी विभक्तिवालोंको आदि लेकर कहना चाहिये । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे उसीकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यक्प्रकृति, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे उसीकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे चौबीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये।
२०६. अनाहारक जीवोंमें सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक है। इनसे बारह कषाय और नौ
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