Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलास हिदे कसा पाहुडे
[ पय डिविहत्ती २
२८. पडिडाणाणं विहत्ती भेदो पयडिद्वाणविहत्ती, तीए पयडिट्ठाणविहत्तीए इमाणि अणियोगद्दाराणि होंति त्ति संबंधो कायव्वो । परोकखाणमणिओगद्दाराणं कथमिमाणि ति पच्चक्खणिसो ? ण, बुद्धीए पञ्च्चक्खीकयाणं तदविरोहादो । तेरस अणियोगद्दाराणि त्ति परिमाणमकाऊण सामण्णेण इमाणि त्ति किमहं णिदेसो कदो ! एदाणि तेरस चेव अणियोगद्दाराणि ण होंति अण्णाणि वि समुक्कित्तणा सादिय अणादिय ध्रुव अद्भुव भाव भागाभागेत्ति सत्त अणियोगद्दाराणि एदेसु तेरससु आणिओगद्दारेसु पविद्याणि त्ति जाणावहं परिमाणं ण कदं । एदेसिं सत्तण्हमणिओगद्दाराणं जहा तेरससु आणिओगद्दारेसु अंतभावो होदि तहा वत्तव्वं ।
२०८. प्रकृतिस्थानों की विभक्ति अर्थात् भेदको प्रकृतिस्थानविभक्ति कहते हैं । उस प्रकृतिस्थानविभक्तिके ये अनुयोगद्वार होते हैं प्रकृतमें इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिये | शंका - जब अनुयोगद्वार परोक्ष हैं, तो उनका 'इमाणि' इस पद के द्वारा प्रत्यक्ष रूपसे निर्देश कैसे हो सकता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि बुद्धिसे प्रत्यक्ष करके उनका 'इमाणि' इस पद के द्वारा प्रत्यक्षरूपसे निर्देश करनेमें कोई विरोध नहीं है ।
शंका- 'प्रकृतिस्थानविभक्तिके विषयमें तेरह अनुयोगद्वार हैं' इस प्रकार उनका परि माण न करके सामान्य से 'इमाणि' इस पदके द्वारा उनका निर्देश किसलिये किया ?
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समाधान- ये अनुयोगद्वार केवल तेरह ही नहीं हैं किन्तु इनमें इनके अतिरिक्त समुकीर्तना, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, भाव और भागाभाग ये सात अनुयोगद्वार और भी सम्मिलित हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिये उक्त अनुयोगद्वारोंका परिमाण नहीं कहा है ।
इन सात अनुयोगद्वारोंका तेरह अनुयोगद्वारोंमें जिस प्रकार अन्तर्भाव होता है। उसका कथन कर लेना चाहिये ।
विशेषार्थ - चूर्णि सूत्रकार ने प्रकृतिस्थानविभक्तिका कथन 'एकजीवकी अपेक्षा स्वामित्व' आदि अनुयोगोंके द्वारा करनेकी सूचना की है जिनकी संख्या तेरह होती है । पर ये अनुयोगद्वार तेरह हैं इस प्रकारका उल्लेख नहीं किया है । इसका कारण बतलाते हुए वीरसेन स्वामी लिखते हैं कि चूर्णिसूत्रकारको यहां समुत्कीर्तना, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, भाव और भागाभाग ये सात अनुयोगद्वार और इष्ट हैं जिनका उक्त अनुयोगद्वारोंमें संग्रह कर लेने पर सबका प्रमाण बीस हो जाता है । यही सबब है कि चूर्णि सूत्रकारने 'तेरह ' संख्याका निर्देश नहीं किया । उक्त तेरह अनुयोगद्वारोंमें समुत्कीर्तना सम्मिलित नहीं है पर चूर्णिसूत्रकारने चूर्णिद्वारा इसका कथन किया है । भागाभाग भी सम्मिलित नहीं हैं पर नानाजीवोंकी अपेक्षा भंग विचयके अनन्तर भागाभाग अनुयोगद्वार आता है और वहां
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