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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
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अत्थो जहासंभव मण्णत्थ वि वत्तव्वो । तदो मिच्छत्त० अविह० संखेखगुणा । अनंताणु० चउक्क० अविह० असंखेज्जगुणा । सम्मत्त ० विह० असंखेजगुणा । सम्मामि० विह० विसे० | तस्सेव अविह० असंखेजगुणा । सम्मत्त० अविह० विसेसा० । अणंताणु०चक्क० विह० विसे । मिच्छत्त० विह० विसे० । अट्ठक० विह० विसे० | वंस० विह० विसे० । चत्तारिसंजल० अट्ठणो ०क० विह० विसे० । पुरिसवेदे सव्वत्थोवा छोक० अहि० । इत्थिवेद ० अविह० संखेज्जगुणा । णवुंस० अविह० विसे० । अक० अवि० [ संखेज्ज ] गुणा । एत्थ कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । सेसपंचिदियभंगो जाव छण्णोकसाय ० विह० विसेसाहियाति । तदुवरि चत्तारि संजल० पुरिस० विह० विसे | णवंस सव्वत्थोवा इत्थि० अविह० । अहक्क० अविह० संखेज्जगुणा । सेसं पंचिदियभंगो । णवरि, सम्मामि० अविह० अनंतगुणा । उवरि वि इत्थवेदविहत्तिभी कहना चाहिये । आठ कषायों की अविभक्तिवाले जीवोंसे मिध्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यग्मिध्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिको अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे मिध्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे आठ कषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे नपुंसकवेदकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे चार संज्वलन और आठ नौकषायकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । पुरुषवेदी जीवोंमें छह नोकषायोंकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे स्त्रीवेदकी अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे नपुंसकवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे आठ कषायों की अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । यहां पर कारण पहले के समान कहना चाहिये । अर्थात् बारह प्रकृतिक विभक्तिस्थानके कालसे तेरह प्रकृतिक विभक्तिस्थानका काल संख्यातगुणा है, अतः नपुंसकवेदकी अविभक्तिवाले जीवोंसे आठ कषायोंकी अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं ऐसा माननेमें कोई बाधा नहीं है । इसके आगे छह नोकषायकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं इस स्थानतकका अल्पबहुत्व पंचेन्द्रियोंके समान है । तथा इसके ऊपर चार संज्वलन और पुरुषवेदकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । नपुंसकवेदी जीवों में स्त्रीवेदकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे आठ कषायोंकी अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। शेष अल्पबहुत्व पंचेन्द्रियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि यहां सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीवोंसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं । तथा आगे भी स्त्रीवेदकी विभक्तिवाले जीवोंसे आठ नोकषाय
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