Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ प डिविहत्ती २
अवि० संखेजगुणा | सेसस्स ओघभंगो जात्र पुरिस० विहत्तिओ ति । तदुवरि चत्तारि संज० विह० विसे० । एवं माण०, णवरि तिष्णिक० विह० विसे० । एवं माया०, वरि दोणिक० वि० विसे० । एवं लोभ०, णवरि लोभ० विह० विसेसाहिया । अकसायी सम्वत्थोवा मिच्छत्त-सम्मत-सम्मामि० विहत्तिया । [ अट्ठक० ], णवणोक० विह० विसे० । तस्सेव अविह० अनंतगुणा । मिच्छत्त - सम्मत्त - सम्मामि० अविह० विसे० | एवं जहाक्खाद० | णवरि जम्हि अनंतगुणा तम्हि संखेजगुणा वत्तव्वं ।
९२०३. आमिणि० - सुद० - ओहि ० सव्वत्थोवा लोभसंजल० अविह ० । मायासंजलण० अविह० विसे० । एवं जाव अडक० अविह० । सम्मत्त० अविह० असंखेजगुणा । सम्मामि ० अविह० विसे० । मिच्छत्त० अविह० विसे० । अनंताणुबंधिच उक्क० अविह० असंखेजगुणा । तस्सेव विह० असंखेजगुणा । मिच्छत्त० विह० विसे० । सम्मामिच्छत्त ० 'पुरुषवेदकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं' इस स्थानके प्राप्त होने तक ओ समान है । इसके आगे चार संज्वलनकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार मान कषायवाले जीवोंका अल्पबहुत्व कहना । किन्तु यहां इतनी विशेषता और है कि चार संज्वलनोंकी विभक्तिवालोंसे तीन संज्वलनोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसीप्रकार मायाकषायवाले जीवोंका अल्पबहुत्व जानना । किन्तु इतनी विशेषता है कि तीन संज्वलनोंकी विभक्तिवालोंसे दो संज्वलनोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इस प्रकार लोभ कषायवाले जीवोंका अल्पबहुत्व जानना । किन्तु यहां इतनी विशेषता और है कि दो सज्वलनोंकी विभक्तिवालोंसे लोभसंज्वलनकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं ।
अकषायी जीवों में मिध्यात्व, सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे आठ कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे उन्हीं की अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे मिथ्यात्व, सम्यक् - प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि ऊपर पूर्व में जहां अनन्तगुणा कहा है वहां यथाख्यातसंयतोंके संख्यातगुणा कहना चाहिये ।
२०३. मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में लोभसंज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे मायासंज्वलन की अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। आगे आठ कषायोंकी अविभक्तिस्थान तक इसी प्रकार कथन करना चाहिये । आठ कषायोंकी अविभक्तिबाले जीवोंसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यग्मिथ्याant अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे मिध्यात्व की अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे उन्हीं की विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे मिध्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष
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