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गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए अप्पाबहुअाणगमो
१८५ सक०-णवणोकसाय० विह. विसे० । एवं मणुसअपज्जा-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्ज०-तसअपज्ज०-चत्तारिकाय-बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्त-बादरवणप्फदिपत्तेयसरीर०-पज्जत्तापज्जत्त-बादरणिगोदपदिहिद-तेसिं पज्जत्तापज्जत्त-विभंगणाणीणं वत्तव्वं ।
६१६५.मणुसगईए मणुसेसु सव्वत्थोवा लोभसंजल० अविहत्तिया । के ते ? खीणकसायप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति । मायासंजल अविह० विसे । माणसंजल० अविह० विसेकोधसंजल० अविह० विसे० । पुरिस०अविह० विसे। छण्णोकसाय-अविह० विसे। इत्थि० अविह० विसे। णवूस० अविह० विसे० । अट्ठक० अविह० विसे। मिच्छत्त० अविह० संखेन्गुणा। अणंताणु० चउक्क० अविह० संखेज्जगुणा। सम्मत्त विह ० असंखेज्जगुणा । सम्मामि० विह विसेसा० । तस्सेव अविह० असंखेज्जगुणा । सम्मत्त अविह० विसे० । अधिक हैं । इनसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, त्रस लब्ध्यपर्याप्तक, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावरकाय, तथा उनके बादर
और सूक्ष्म तथा बादर और सूक्ष्मोंके पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर निगोदप्रतिष्ठितप्रत्येकशरीर तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त तथा विभंगज्ञानी जीवोंके कहना चाहिये। ६१९५. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें लोभसंज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं।
शंका-लोभसंज्वलनकी अंविभक्तिवाले मनुष्य कौनसे हैं ? । .... समाधान-क्षीणकषाय गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तकके जीव लोभसंज्वलनकी अविभक्तिवाले हैं।
__ लोभसंज्वलनकी अविभक्तिवाले मनुष्योंसे मायासंज्वलनकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं । इनसे मानसंज्वलनकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं। इनसे क्रोधसंज्वलनकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं । इनसे पुरुषवेदकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं। इनसे छह नोकषायोंकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं । इनसे स्त्रीवेदकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं । इनसे नपुंसकवेदकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं । इनसे आठ कषायोंकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं । इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले मनुष्य संख्यातगुणे हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले मनुष्य संख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यकप्रकृतिकी विभक्तिवाले मनुष्य असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले मनुष्य असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले मनुष्य विशेष अधिक हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी
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