Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपयडिविहत्तीए सामित्ताणुगमो
(५
कस्स ? अण्ण० सम्मादि० मिच्छादि० वा । पुरिसवेदएसु इत्थिवेदभंगो। णवरि इत्थिवेद-छण्णोक० अविहत्ती कस्स ? खवयस्स । णवूस० इस्थिवेदभंगो । णवरि णqसयवेदस्स अविहरिया णत्थि । इत्थिवेद० पुरिसवेदभंगो। अवगद० मिच्छत्तसम्मत्त०-सम्मामि०-अष्टक०-दोवेदविहत्ती कस्स० ? अण्ण उवसामयस्स । अविहत्ती कस्स ? अण्ण० खवयस्स । णवरि दंसणतियअविहत्ती उवसामगस्स वि । चत्तारिसंजलण-पुरिस-छण्णोकसाय० विहत्ती कस्स ? अण्ण० उवसामयस्स वा खवयस्स वा । अविहत्ती कस्स ? अण्णद० खवयस्स। नोकषायकी विभक्ति किसके हैं। किसी भी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि स्त्रीवेदी जीवके है। पुरुषवेदियोंमें स्त्रीवेदियोंके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदियोंमें स्त्रीवेद और छह नोकषायकी अविभक्ति किसके है ? क्षपक पुरुषवेदी जीवके है। नपुंसकवेदियोंमें स्त्रीवेदियोंके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके नपुंसकवेदकी अविभक्ति नहीं है । तथा स्त्रीवेदका कथन पुरुषवेदके समान है। अपगतवेदियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि आठ कषाय और दो वेदोंकी विभक्ति किसके है ? किसी भी उपशामक जीवके इन प्रकृतियोंकी विभक्ति है। तथा उक्त प्रकृतियोंकी अविभक्ति किसके है ? किसी एक क्षपक जीवके उक्त प्रकृतियोंकी अविभक्ति है। इतनी विशेषता है कि तीन दर्शनमोहनीयकी अविभक्ति उपशामकके भी है । तथा चार संज्वलन, पुरुषवेद और छह नोकषायोंकी विभक्ति किसके है ? किसी भी उपशामक या क्षपक अपगतवेदी जीवके इन प्रकृतियोंकी विभक्ति है । तथा इनकी अविभक्ति किसके है ? किसी एक क्षपक जीवके इनकी अविभक्ति है।
विशेषार्थ-स्त्रीवेदियोंके चार संज्वलन, छह नोकषाय, पुरुषवेद और स्त्रीवेद इन बारह प्रकृतियोंका नियमसे सत्त्व है। तथा शेष सोलह प्रकृतियोंका किन्हींके सत्त्व है और किन्हींके नहीं। पुरुषवेदियोंके चार संज्वलन और पुरुषवेदका सत्त्व नियमसे है। शेषका सत्त्व किन्हींके है और किन्हींके नहीं। नपुंसकवेदियोंके स्त्रीवेदियोंके समान जानना चाहिये । पर इतनी विशेषता है कि इनके स्त्रीवेदके सत्त्वके स्थानमें नपुंसकवेदका सत्त्व कहना चाहिये । इन तीनों वेदवाले जीवोंके जिन प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे है उन्हें छोड़कर शेष प्रकृतियोंका सत्त्व किसके है और किसके नहीं, इसका स्पष्टीकरण ऊपर किया ही है, तथा अपगतवेदियोंके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका सत्त्व नियमसे नहीं है, अतः ऊपर इनका उल्लेख नहीं किया है। तथा इनके अतिरिक्त शेष चौबीस प्रकृतियोंका सत्त्व है भी और नहीं भी है। उपशामक अपगतवेदीके तीन दर्शनमोहनीयको छोड़कर शेष इक्कीस प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे है। तथा तीन दर्शनमोहनीयका सत्त्व है भी और नहीं भी है। जो क्षायिक सम्यक्त्वके साथ उपशमश्रेणी पर चढ़ा है उसके नहीं है।
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