Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपय डिविहती कालानुगमो
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६१२८. जोगाणुवादेण पंचमण० - पंचवचि० - वेउन्विय० - वेउब्वियमिस्स ० अहावीसंपडणं विहति ० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुतं । णवरि वेउब्वियमिस्स ० छब्बीसंपयडीणं जह० अंतोमुहुतं । कायजोगीसु सम्मत्त सम्मामि० विहत्ति ० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । सेसछब्बीसंपयडीणं विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्त अनंतकालो असंखेजा पोग्गलपरियट्टा । कथमेत्थ एगसमयमेतजहण्णकालोवलंभो चे ?ण; विहत्तिगचरिमसमए कायजोगेण परिणदम्मि तदुवलद्धीदो । ओशलिय ० मिच्छत्त-सम्मत्त - सम्मामि० सोलसकसाय णवणोकसायविहत्ति ० जह० एगसमओ, उक्क० बाबीसवस्ससहस्साणि देखणाणि । ओरालियमिस्स अट्ठावीसपयडीणं विहन्ति जह० खुद्दाभवग्गहणं तिसमयूणं, उक्क० अंतोमुहुतं । णवरि सम्मत्त - सम्मामि ० विशेषार्थ — सकायिक जीवोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक दो हजार सागर है, अतः इनके छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल भी उतना ही है । तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एकसौ बत्तीस सागर उद्वेलनाके कालके भीतर पुनः पुनः सम्यक्त्वकी प्राप्तिकी अपेक्षा है जिसका खुलासा पहले कर आये हैं । पर्याप्त त्रसकायिकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल दो हजार सागर है, इसलिये इनके छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल भी उतना ही कहा है। शेष कथन सुगम है ।
९१२८. योगमार्गणाके अनुवाद से पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी और वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके अट्ठाईस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । सामान्य काययोगी जीवोंके सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ।
शंका- यहां सामान्य काययोगी जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय कैसे प्राप्त होता है ?
समाधान- उक्त छब्बीस प्रकृतियोंके क्षय होनेके अन्तिम समयमें काययोगसे परिणत होने पर छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो जाता है ।
औदारिककाययोगी जीवोंके मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके अट्ठाईस प्रकृतियोंका जघन्य काल तीन समय कम
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