Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पयडिविहत्ती २
केवलिभंगो णात्थ । चक्खुदंसणी-सण्णीणमेवं चेव वत्तव्वं । वेउब्वियकायजोगि० सव्वपय० विह० सम्म०-सम्मामि० अविह० केव० खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो, अह तेरह चोदसभागा वा देसूणा । मिच्छत्त-अणंताणु०४ अविह० लोगस्स असंखे०भागो, अह चोद्दसभागा वा देसूणा। ___६१८१. अभिणि-सुद०-ओहि० सत्तपय० विह० सत्तपय० अविह० केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखे०भागो अह चोदसभागा वा देसूणा । सेस० अविह० खेत्तभंगो । एवमोहिदंसण-सम्मादि०-खइय०-वेदय०-उवसम०-सम्मामिच्छाइहीणं वत्तव्वं । गवरि, अविहत्तिय० गदि-[पद] विसेसो जाणिय वत्तव्यो । विहंग० सव्वपय० विह० सम्मत्त-सम्मामि० अविह० के० खेत्तं फोसिदं ? लोग०असंखे० भागो, अह चोदसभागा वा सव्वलोगो वा।
६१८२. संजदासंजद० सव्वपय० विह० अणंताणु० अविह० के० खेत्तं फोसिदं ? मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनमें केवलिसमुद्धातपदके समान स्पर्श नहीं है। चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंके भी इसी प्रकार कथन करना चाहिये । वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले वैक्रियिककाययोगी जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और प्रसनालीके चोदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
१८१. मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले उक्त मतिज्ञानी आदि जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि
और सम्यक्मिथ्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओं: में अविभक्तिवाले जीवोंके पदविशेष जानकर कहना चाहिये। विभंगज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोगके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है।
६१८२. संयतासंयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले और अनन्तानुबन्धी
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