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गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए अप्पाबहुप्राणुगमो
१७७ कम्मइय०-णवंस । णवरि णवंसयवेदे अणोकसाय-चदुसंजलगाणं अविहत्तिया णथि । आहारि-अणाहारीणं भवसिद्धियाणं च ओघभंगो। - ६१८८.आदेसेण णिरयगईए णेरईएसु सव्वत्थोवासम्मत्त-सम्मामिच्छताणं विहत्तिया अविहत्तिया असंखजगुणा । मिच्छत्त-अणताणु० चउक्काणं सव्वत्थोवा अविहत्तिया, विहत्तिया असंखेजगुणा। एवं पढमपुढवि-पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत-देवसोहम्मादि जाव सहस्सात्ति वत्तव्यं । विदियादि जाव सत्तमि त्ति सव्वत्थोवा अणंताणुबंधिचउक्क० अविहत्तिया, विहत्तिया-[अ] संखजगुणा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं नोकषाय और चार संज्वलनोंकी अविभक्तिवाले जीव नहीं हैं । आहारक, अनाहारक और भव्य जीवोंके अल्पबहुत्वका भंग ओघके समान है।
विशेषार्थ-बारहवें गुणस्थानसे लेकर चौदहवें गुणस्थान तकके जीव तथा सिद्ध जीव ऐसे हैं जिनके मोहनीय कर्मकी सत्ता नहीं पाई जाती । किन्तु शेष ग्यारहवें गुणस्थान तकके जीवोंके मोहनीय कर्मकी सत्ता है। इसलिये प्रकृतमें मोहनीयकी छब्बीस प्रकृतियोंकी अविभक्तिवालोंसे उन्हींकी विभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे बतलाये हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सम्बन्धमें विशेष वक्तव्य होनेसे उनकी अपेक्षा अल्पबहुत्व अलगसे कहा है। उसमें भी सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्वकी सत्ता सब जीवों के नहीं पाई जाती किन्तु जो उपशम सम्यग्दृष्टि हैं, या जिन्होंने वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त कर लिया है, या जिन्होंने इन दो प्रकृतियोंकी क्षपणा अथवा उद्वेलना नहीं की है उन्हींके इन दो प्रकृतियोंकी सत्ता पाई जाती है शेष सब संसारी जीवोंके और मुक्त जीवोंके इनकी सत्ता नहीं पाई जाती, इसलिये इन दो प्रकृतियोंकी विभक्तिवालोंसे अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इन सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले कौन जीव हैं और अविभक्तिवाले कौन जीव हैं इसका निर्देश मूलमें किया ही है।
६१८८.आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नरक गतिमें नारकियोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यक्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इन दो प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार पहली पृथिवी, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त, सामान्यदेव और सौधर्म स्वर्गसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंके कहना चाहिये । दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक नरकमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। जिन मार्गणाओंमें जीवोंका प्रमाण असंख्यात है उन सभी मार्गणाओंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्थ्यिात्वकी विभक्ति और अविभक्तिवालोंका कथन नारकियोंके समान करना चाहिये । आशय यह है कि असंख्यात संख्यावाली मार्गणाओंमें सम्यक्
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