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treaलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहती २
पज्ज० मिच्छ० अविद्द० के० ? लोग० असंखे ० भागो । एवं पांच० तिरि० अपज्ज०सव्वमणुस - सव्वविगलिंदिय-पंचिदियअपज्ज० - तसअपज्ज० बादरपुढवि०-यादरआउ०बादरते उ०- बादरवणप्फ दिपत्तेय०- बादरणिगोदपदिद्विदपज्जताणं वत्तम्वं । णवरि, मनुस्सतिए अविहत्तियाणं केवलिभंगो कायव्वो । अण्णत्थ सम्म० सम्मामि० बज्जाणमविह० णत्थि । बादरवाउपज्जत० सव्वपयाड० विह० सम्म० -सम्मामि० अविह० के० खेतं फोसिद ? लोगस्स संखेज्जदिभागो सम्बलोगो वा । णवरि, सम्म० - सम्मामि० वि० वमाणेण लोग असंखे० भागो ।
१७६. देवे सव० विह० सम्म० सम्मामि० अविह० के० खेलं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो, अट्ठणव चोदसभागा वा देखूणा । मिच्छत्त- अणंताणु० अविद्द० लोगस्सं असंखे० भागो अह चोदसभागा वा देखणा । एवं सोहम्मीसाणेसु । भवण० - वाण० - जो है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रस नालीके चौदह भागों में से छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पंचेन्द्रिय तिर्यच और पंचेन्द्रिय तिर्येच पर्याप्तकों में मिध्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यच लब्ध्यपर्याप्तक, सब प्रकार के मनुष्य, सभी विकलेद्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, श्रस लब्ध्यपर्याप्तक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बारद जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त. बादर वनस्पति प्रत्येक शरीर पर्याप्त और बादर निगोद प्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनियोंमें उक्त सात प्रकृतियों की अविभक्तिवाले मनुष्यों का स्पर्श केवलि - समुद्धात पदके समान कहना चाहिये । इनके अतिरिक्त उपर्युक्त अन्य पंचेन्द्रिय तियैच लब्ध्यपर्याप्तक आदि मार्गणाओं में सम्यकप्रकृति और सभ्यमिध्यात्वको छोड़कर शेष प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीव नहीं हैं । बादर वायुकायिक पर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवने और सम्यक्प्रकृति तथा सम्यमिध्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके संख्यातवें भाग क्षेत्रका और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंने वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। $१७९. देवोंमें सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंने तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व की अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ तथा नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ? मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले देवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और प्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में देवोंके स्पर्शका कथन करना
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