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गा० २२ ) . उत्तरपयडिविहत्तीए फोसणाणुगमो
१४७ मिच्छा० अणंताणु० ४ अविह० केव० १ लोगस्स असंखे भागो। पढमपुढवीए खत्तभंगो। एवं णवगेवज्ज० जाव सव्वह०-वेउव्वियमिस्स०-आहार०-आहारमिस्स०-अवगदवेदअकसाय-मणपज्जव०-संजद-सामाइयछेदो०-परिहार०-सुहुम०-जहाक्खादेत्ति वत्तव्यं । णवरि, अवगदवेद-अकसाय-संजद-जहाक्खादेसु अविहत्तियाणं केवलिभंगो कायव्यो । अण्णत्थ वि पदविसेसो जाणियव्यो। विदियादि जाव सत्तमि ति सध्वपयडीणं विहत्तिएहि सम्मत्त-सम्मामि० अविहत्तिएहि य केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेजदिभागो एक बे तिण्णि चत्तारि पंच छ चोद्दसभागा वा देसूणा । अणंताणु अविह० लोग० असंखे० भागो।
६१७८. पंचिंदियतिरिक्खतिएसु सव्वपयडीणं विह० सम्मत्त-सम्मामि० अविह केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० भागो सव्वलोगो वा । अणंताणु० ४ अविह० केव० १ लोग० असंखे० भागो छ चोदसभागा । पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिं०तिरि० कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले सामान्य नारकियोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पहली पृथिवीमें स्पर्श क्षेत्रके समान होता है। इसी प्रकार नौ प्रैवेयकसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंके तथा वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायिक, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अपगतवेदी, अकषायी, संयत और यथाख्यातसंयत जीवोंमें उक्त सात प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श केवलिसमुद्धातपदके समान कहना चाहिये । तथा ऊपर कहे गये मार्गणास्थानोंमेंसे मन:पर्ययज्ञानी आदि अन्य मार्गणास्थानोंमें भी पदविशेष जान लेना चाहिये । ___दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंने
और सम्यक्प्रकृति तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम एक भाग, दो भाग, तीन भाग, चार भाग, पांच भाग, तथा छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनन्तानुबन्धीकी अविभक्तिवाले उक्त द्वितीयादि पृथिवीके नारकियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है।
१७८. पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त और पंचेन्द्रिय योनिमती तियचोंमें सर्व प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीवोंने और सम्यक्प्रकृति तथा सम्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले उक्त जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया
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