Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयाडनिहत्ती २ असण्णि-आहारि०-अणाहारि त्ति वत्तव्वं । णवरि, अभवसिद्धि० सम्मत्त-सम्मामि० (बज्जाणं) अविह० णत्थि । कायजोगि०-कम्मइय०-भवसिद्धिय-अणाहारिमग्गणाओ मोत्तण अण्णत्थ केवलिपदं णस्थि । तिरिक्खोघम्मि अणंताणुवंधिचउक्कअविहत्तियाणंछ चोदसभागा। एवमोरालिय०-णवूसयवेदाणं वत्तव्यं । एदेसु मिच्छ० अविह लोगस्स असंखे० भागो। सम्मत्त-सम्मामि० विह० अह चोदसभागा णत्थि । चत्तारि कसाय-असंजद-अचक्खुमिच्छ०-अणंताणु० अविह० अह चोदसभागा । तिण्णिलेस्सा० लोगस्स असंखे०भागा । वुत्तसेस-मग्गणासु सम्मत्त-सम्मामि०वज्जाणमविहत्तिया णत्थि, अण्णत्थ वि विसेसो अत्थि सो जाणिय वत्तव्यो।
६१७७. आदेसेण णिरयगईए णेरइएसु अट्ठावीसपयडीणं विह० सम्मत्त-सम्मामि अविह० केव० खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असेखज्जदिभागो, छ चोदसभागा वा देरणा । . मिध्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अभव्य जीवोंके सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष प्रकृतियोंकी अविभक्ति नहीं है। तथा काययोगी, कार्मणकाययोगी, भव्य और अनाहारक मार्गणाओंको छोड़कर उपर्युक्त शेष मार्गणाओं में केवलिसमुद्धात पद नहीं है। सामान्य तिर्यंचोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीवोंने त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार औदारिककाययोगी और नपुंसकवेदी जीवोंके कहना चाहिये । इन उक्त मार्गणाओंमें मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंध्यास भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिध्यात्वकी विभक्तिवाले जीवोंका स्पर्श त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे आठ भागप्रमाण नहीं है । कोषादि चारों कषायवाले, असंयत और अचक्षुदर्शनी जीवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबम्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीवोंने असनालीके चौदह भागोंमेंसे आठ मागप्रमाण पेत्रका स्पर्श किया है। तथा कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। उपर जिन मार्गणाओंमें अनन्तानुबन्धी चतुडकके अभावकी अपेक्षा स्पर्श कहा है उन मार्गणाओंको छोड़कर ऊपर कही गई शेष मार्गणाओंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व को छोड़कर शेष प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीव नहीं है। इनके अतिरिक्त औदारिकमिश्रकाययोगी आदि मार्गणाओंमें भी विशेषता है सो जान कर उसका कथन करना चाहिये। .. १७७. आदेशनिर्देशकी अपेक्षानरकगतिमें नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले
और सम्यक्प्रकृति तथा सम्यग्मिध्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ
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