Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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န်မွန်
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
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सिया अविह० ; सेसाणं णियमा विहत्तिओ । सम्मत्त० जो विहसिओ सो मिच्छत्तसम्मामि० - अनंताणु० चउक्क० सिया विह० सिया अविह०; सेसाणं णियमा विह० । सम्मामि ० जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त० -अणंताणु० चउक्क० सिया विह० सिया अविह०; सेसाणं णियमा विह० । अनंताणु० कोध० जो विहत्तिओ सो सव्वपयडीणं णियमा विहाओ । एवं तिन्हं कसायाणं । अपश्च० कोध० जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त-सम्मत्त - सम्मामि० - अनंताणु० चउक्क० सिया विह० सिया अविह०; एक्कारस कसाय णवणोकसाय० णियमा विह० । एवमेक्कारसकसाय - णवणोकसायाणं । एवं संजदासंजदाणं । सुमसां पराय • मिच्छत्तस्स जो विहत्तिओ सो सव्वपयडीणं णियमा विहति । एवं सम्मामिच्छत्ताणं । अपच्च० कोध० जो विह० सो मिच्छत्त - सम्मत्त - सम्मामि० सिया विह० सिया अविह० ; सेसाणं णियमा विह० । एवं दसक०णवणोकसायाणं । लोभसंज० जो विहात्तओ सो सेसाणं सिया विह० सिया अविह० । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो सम्यमिध्यात्वकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है; किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो अनन्तानुबन्धी क्रोधकी विभक्तिवाला है वह नियमसे सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला है । इसीप्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायकी अपेक्षा जानना चाहिये । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु शेष ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसी प्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिये । इसीप्रकार संयतासंयतोंके कथन करना चाहिये । सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवोंमें जो मिध्यात्वकी विभक्तिवाला है वह अनन्तानुबन्धी चतुष्कके सिवाय शेष सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार सम्यग्मिध्यत्व की अपेक्षा जानना चाहिये । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी विभक्तिवाला है वह मिध्यात्व, सम्यक् प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। किन्तु वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार लोभसंज्वलनको छोड़कर अप्रत्याख्यानावरण मान आदि दस कषाय और नौ कषायकी अपेक्षा जानना चाहिये । जो लोभसंज्वलनकी विभक्तिवाला है वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है ।
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विशेषार्थ - सूक्ष्म सांपरायिक जीवोंके २४.२१ और १ ये तीन विभक्तिस्थान होते हैं । यहांभी अनन्तानुबन्धी चारको छोड़कर शेष चौबीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा विचार किया गया है । ऊपर के सभी विकल्प इसी अपेक्षासे घटित कर लेना चाहिये ।
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