Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिविहत्तीए परिमाणाणुगमो
१५६ अविह० केत्ति० १ अणंता । वारसक०-णवणोकसाय० विह० केत्ति० १ अणंता । एवमसंजद-तिण्णिलेस्सएत्ति वत्तव्वं । णवरि, किण्ह-णीलले० मिच्छत्त० अविह. के० १ संखेज्जा । पंचिं०तिरि०अपज्ज० सम्मत्त-सम्मामि० विह० अविह० केत्ति० ? असंखेजा । मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० विह. असंखेजा । एवं मणुसअपञ्ज०सम्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपञ्ज०-चत्तारिकाय-बादरसुहुम०-तेसिंपन्ज० -अपज०-बादरबणप्फदि० पत्तेयसरीर०-बादरणिगोदपदिष्टिद०-तेसिंपज०-अपञ्ज०-तसअपज०-विहंग. वत्तव्वं ।
६१७१.मणुसगईए मणुस्सेसु छब्बीसंपयडीणं विह० केत्ति० ? असंखेजा। अविह० केत्ति० १ असंखेजा (संखेजा)। सम्मत्त-सम्मामि० विह० अविह० केत्ति० ? असंखेजा। मणुसपञ्ज०-मणुसिणीसु अठ्ठावीस० विह० अविह० केत्तिया ? संखेजा । एवं मणपजव०संजद०-सामाइय-छेदो० वत्तव्वं । णवरि सामाइयछेदो० लोह. अविह० णत्थि । 'सव्वह० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० विह. अविह० केत्ति० ? संखेजा । बारसक०-णवणोकसाय० विह० केत्ति० ? असंखेजा (संखेजा)। एवमातिर्यच जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसीप्रकार असंयत और कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्यावाले जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि कृष्णलेश्यावाले और नीललेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्ति और अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, पृथिवीकायिक आदि चार स्थावरकाय तथा इन चारोंके बादर और सूक्ष्म तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त,बादर बनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर,बादर निगोद प्रतिष्ठित तथा इन दोनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त, वसलब्ध्यपर्याप्त और विभंगज्ञानी जीवोंके कहना चाहिये।
६१७१.मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले मनुष्य कितने हैं ? असंख्यात हैं । अविभक्तिवाले कितने हैं ? संख्यात हैं। सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्ति और अविभक्तिवाले कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्ति और अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोमें लोभकी अविभक्तिवाले जीव नहीं हैं। सर्वार्थसिद्धि में मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सन्यग्मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ?
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