Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ..
[पयडिविहत्ती २
सो मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० [ अहकसा०-णवूस० ] सिया विह० सिया अविह; सेसाणं णियमा विहत्तिओ । एवं णवूस० । पुरिसवेदस्स जो विहत्तिओ सो मिच्छत्तसम्मत्त-सम्मामि०-अटक-अट्ठणोक० सिया विह० अविह०; चत्तारिसंजलण णियमा विह० । हस्स० जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अष्टकसायदोवेद० सिया विह• सिया अविह०; चत्तारिसंजल-पुरिस०-पंचणोकसाय० णियमा विहत्तिओ। एवं रदीए । एवमरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं ।
६१४६. कसायाणुवादेण कोधकसाईसु पुरिसभंगो। णवरि, पुरिसवेदस्स सिया विहतिओ सिया अविहत्तिओ । एवं माणक०, णवरि कोधक० सिया विह० सिया अविह० । एवं माय०, णवरि माण• सिया विह० सिया अविह० [एवं लोभ० । णवरि मायक सिया विह० सिया अविह० । ] अकसाईसु मिच्छत्तस्स जो विहत्तिओ सो सव्वपयडीणं णियमा विहत्तिओ। एवं सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं । अपञ्च०कोध० जो विहत्तिओ सम्यग्मिथ्यात्व, आठ कषाय और नपुंसकवेदकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। किन्तु वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है। इसीप्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा कथन करना चाहिये । जो पुरुषवेदकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि आठ कषाय और आठ नोकषायोंकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु चार संज्वलनोंकी विभक्तिवाला नियमसे है। जो हास्यकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरग क्रोध आदि आठ कषाय, और स्त्री तथा नपुंसकवेदकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है किन्तु चार संज्वलन, पुरुषवेद और रति आदि पांच नोकषायोंकी विभक्तिवाला नियमसे है। इसीप्रकार रतिकी अपेक्षा तथा अरति, शोक, भय और जुगुप्सा की अपेक्षा कथन करना चाहिये।
११४१.कषायमार्गणाकेअनुवादसे क्रोधकषायी जीवोंके पुरुषवेदी जीवोंके समान कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि क्रोधकषायी जीव पुरुषवेदकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। इसीप्रकार मानकषायी जीवोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि मानकषायी जीव क्रोधकषायकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। इसीप्रकार मायाकषायी जीवोंके समझना चाहिये । इतनी विशेषता है कि मायाकषायी जीव मानकपायकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। इसीप्रकार लोभकषायी जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि लोभकषायी जीव मायाकषायकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। अकषायी जीवों में जो मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है वह नियमसे अनन्तानुबन्धीके सिवा सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला है। इसी प्रकार सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वकी अपेक्षा जानना चाहिये । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी विभक्तिवाला है
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