Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपय डिविहत्ती भागाभागी
सुहुम- पज्ज० अपज्ज० - मदि- सुद० -मिच्छादिट्टि असण्ण त्ति वत्तव्वं ।
१६५. वेदाणुवादेण इत्थि वेदे पंचिंदियभंगो। णवरि, चत्तारिसंजलण- अट्टणोक० भागाभागो णत्थि । एवं णउंस० वत्तव्वं । णवरि इत्थवे ० अस्थि भागाभागो । सव्वत्थ अनंतभागाला वो कायव्वो । पुरिसवेदे पंचिदि० भंगो | णवरि, चत्तारिसंजलणपुरिस भागाभागो णत्थि । अवगदवेद० चउवीस० विह० सव्वजी० के० ? अणंतिमभागो । अविह० सव्वजी० के० १ अनंता भागा। एवमकसाय० सम्मादिहिखइय० वत्तव्वं ।
९ १६६. कसायाणुवादेण कोध० ओघभंगो। णवरि, चत्तारिसंजलण० भागाभागो बादर निगोद जीव, सूक्ष्म निगोद जीव, बादर निगोद पर्याप्त जीव, बादर निगोद अपर्याप्त जीव, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीव, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्याfष्ट और असंज्ञी जीवोंके कहना चाहिये ।
विशेषार्थ - उपर्युक्त मार्गणावाले जीव अनन्त हैं और यहां सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्व इन दोनोंका सत्व और असत्त्व दोनों सम्भव हैं तथा शेषका सत्व ही है । अतः इन दो प्रकृतियोंकी अपेक्षा उक्त मार्गणाओं में भागाभाग ओघके समान कहा है ।
९१६५. वेदमार्गणा के अनुवादसे स्त्रीवेदी जीवोंके पंचेन्द्रियोंके समान भागाभाग होता है । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी जीवोंके चार संज्वलन और आठ नोकषायकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता । इसीप्रकार नपुंसकवेदी जीवोंके भागाभाग कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदी जीवोंके स्त्रीवेदकी अपेक्षा भी भागाभाग होता है । परन्तु नपुंसक वेदी जीवोंके भागाभाग कहते समय सर्वत्र असंख्यातभागके स्थान में अनन्तभाग कहना चाहिये । पुरुषवेदी जीवोंमें पंचेन्द्रियोंके समान भागाभाग होता है । इतनी विशेषता है कि इनके चार संज्वलन और पुरुषवेदकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता । अपगतवेदी जीवोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी विभक्तिबाले जीव समस्त अपगतवेदी जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । तथा अविभक्तिवाले अपगतवेदी जीव समस्त अपगतवेदी जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार अकषायी, सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंके भागाभाग कहना चाहिये ।
विशेषार्थ - इन उपर्युक्त मार्गणाओंमें स्त्रीवेद वाले और पुरुषवेदवालों का प्रमाण असंख्यात है । इनके अतिरिक्त शेष सब मार्गणावालोंका प्रमाण अनन्त है । अतः जहां जितनी प्रकृतियोंका सत्त्व और असत्व पाया जाय उस क्रमको ध्यान में रखकर उपर्युक्त व्यवस्थानुसार इन मार्गणाओं में भागाभाग जानना ।
९१६६. कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायी जीवोंके भागाभाग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि क्रोधकषायी जीवोंके चार संज्वलनकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता ।
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