Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिविहत्ती २ णत्थि। एवं माण०, णवरि तिण्णिसंजलण० भागाभागो णस्थि । एवं माय०, गवरि दोण्हं संजलण० भागाभागो णत्थि । एवं लोभ०, णवरि लोभ० भागाभागो णत्थि । सुहुमसापराय० तेवीसपयडि० विह० सव्वजी० केव० १ संखेजदिभागो। अविह० सव्वजी० केव० ? संखेजा भागा । लोभसंजलण भागाभागो गस्थि० । जहाक्खाद० चउवीस० विह० केव० १ संखेजदिभागो। अविह. सबजी० केव ? संखेजा भागा। संजदासंजद० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क० विह० सव्वजी० केव० ? असंखेजा भागा। अविह० केव० ? असंखे भागो। सेसाणं णत्थि भागाभागो। इसीप्रकार मानकषायी जोवोंके भागाभाग होता है। इतनी विशेषता है कि इनके मान आदि तीन संज्वलनकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता। इसीप्रकार मायाकषायी जीवोंके भागाभाग होता है। इतनी विशेषता है कि इनके माया और लोभ संज्वलनकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता। इसीप्रकार लोभकषायी जीवोंके भागाभाग होता है। इतनी विशेषता है कि इनके लोभसंज्वलनकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता।
विशेषार्थ-क्रोधादि प्रत्येक कषायवाले जीवं अनन्त हैं अतः इनका भागाभाग ओघके समान बन जाता है । शेष विशेषता ऊपर बतलाई ही है।
सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीवोंमें तेईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव सर्व सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण है । तथा अविभक्तिवाले समस्त सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीवोंके लोभसंज्वलनकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है। यथाख्यात संयत जीवोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव समस्त यथाख्यात संयत जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं। तथा अविभक्तिवाले जीव समस्त यथाख्यात संयत जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । संयतासंयत जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले जीव सब संयतासंयत जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ; असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। तथा अविभक्तिवाले जीव सब संयतासंयतोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। संयतासंयत जीवोंमें शेष प्रकृतियोंकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है।
विशेषार्थ-सूक्ष्मसांपरायिक और यथाख्यातसंयत जीवोंमें उपशमश्रेणीवालोंसे क्षपकश्रेणीवाले संख्यातगुणे होते हैं, अतः इनका भागाभाग उक्त रूपसे कहा है। यद्यपि संयतासंयतोंका प्रमाण असंख्यात है तो भी उनमें मिथ्यात्व आदिकी सत्तासे रहित जीव अल्प है। अतः यहां भी इनकी अविभक्तिवालोंसे इनकी विभक्तिवाले असंख्यात बहुभाग कहे हैं। यहां शेष प्रकृतियोंकी अपेक्षा भागाभाग नहीं होता।
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