Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपयडिविहत्तीए सरिणयासो
१४३
किण्हणील० वेडव्वियकायजोगिभंगो | अभवसिद्धि० मिच्छत्त० जो विहत्तिओ सो पणुबी संपयडीणं णियमा विहत्तिओ । एवं पणुबीसपयडीणं ।
$ १५२. खइयसम्मादिट्ठीसु अपश्च० कोध० जो विहत्तिओ सो बीसहं पयडीणं णियमा विह० । एवं सत्तक० । सेसाणमोघभंगो । वेदगसम्मादिट्ठीसु मिच्छत्तस्स जो विहत्तिओ सो अनंताणु ० चउक्क० सिया विह० सिया अविह० : सेसाणं णियमा विहत्तिओ | सम्मत्त० जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त-सम्मामि० - अणंताणु ० चउक्क० सिया विह० सिया अहि०; सेसाणं णियमा विह० । एवं बारसक० णवणोकसाय० । सम्मामि ० जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त-अनंताणु० चउक्क० सिया विह० सिया अविह० । सेसाणं णियमा विह० । अनंताणु० कोध० जो विहत्तिओ सो सव्वपयडीणं णियमा विह० । एवं तिन्हं कसायाणं । उवसमसम्माइट्टीसु मिच्छत्तस्स जो विहत्तिओ सो अताणु ० चउक्क० सिया विह० सिया अविह०; सेसाणं णियमा विहत्तिओ । एवं सम्मत्त सम्मामिच्छत्त बारसकसाय - णवणोकसाय० । अनंताणु०कोध० जो विहत्तिओ
कृष्ण और नीललेश्या वालोंके वैक्रियिककाययोगी जीवोंके समान समझना चाहिये । अभव्य जीवोंमें जो मिथ्यात्वकी विभक्तिबाला है वह सम्यक् प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष पच्चीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसी प्रकार पचीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा जानना चाहिये ।
१५२. क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों में जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोध की विभक्तिवाला है वह बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि सात कषायकी अपेक्षा जानना चाहिये । शेष प्रकृतियोंकी अपेक्षा कथन ओघके समान है । वेदक सम्यग्दृष्टियों में जो मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है वह अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला है वह मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिये । जो सम्यग्मिथ्यात्व की विभक्तिवाला है वह मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो अनन्तानुबन्धी क्रोध की विभक्तिवाला है वह सभी प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार अनतानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिये । उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों में जो मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है वह अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार सम्यक्प्रकृति, सम्यकग्मिध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना
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