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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिविहत्ती २ विहत्ति० ओघभंगो । सेसाणं पयडीणं णत्थि अंतरं।
१३६. जोगाणुवादेण पंचमण-पंचवचि०-कायओगि-ओरालि०-वेउव्विय० चत्तारिकसाय० सम्मत्त-सम्मामि० विहत्ति० अंतरं केव० ? जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । सेसाणं पयडीणं णत्थि अंतरं।
६ १४०. वेदाणुवादेण इत्थिवेदेसु सम्मत-सम्मामि०-अणंताणुबंधिचउक्क. विहत्ति० जह० एगसमओ अंतो, उक्क० सगहिदी देसूणा पणवण्णपलिदो० देसूणाणि । सेसाणं पय० णस्थि अंतरं। पुरिसवेदेसु सम्मत्त-सम्मामि० विहत्ति० अंतरं केव० १ जह० एगसमओ, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । अणंताणुबंधिचउक्क० विहत्ति० ओघस्थितिप्रमाण है। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्कका अन्तरकाल ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंका अन्तरकाल नहीं है।
विशेषार्थ-सामान्य पंचेन्द्रिय आदिकी पहले जो उत्कृष्ट कायस्थिति बतला आये हैं उसमेंसे कुछ कम कर देने पर सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तरकाल हो जाता है। कुछ कमका प्रमाण जैसा ऊपर घटित करके लिख आये हैं उसीप्रकार यहां पर घटित करके जान लेना चाहिये । शेष कथन सुगम है।।
६१३६. योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी पांचों वचनयोगी, काययोगी औदारिककाययोगी और वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें तथा चारों कषायवाले जीवोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। तथा शेष प्रकृतियोंका अन्तरकाल नहीं है ।
विशेषार्थ-जिसको सम्यक्प्रकृति या सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना किये एक समय या अन्तर्मुहूर्त हुआ है ऐसे किसी उपर्युक्त योगवाले मिथ्यादृष्टि जीवके उपशमसम्यक्त्वकी प्राप्तिके साथ पुन: जब सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका सत्त्व हो जाता है तब उक्त योगवाले या किसी कषायवाले जीवके उक्त दोनों प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त बन जाता है। तथा शेष प्रकृतियोंका यहां अन्तरकाल संभव नहीं है।
६१४०. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी जीवोंमें सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। और सम्यक्त्व तथा सम्यक्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी स्थिति प्रमाण और अनन्तानुबन्धीका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचपन पल्य है । तथा शेष प्रकृतियोंका अन्तरकाल नहीं है। पुरुषवेदियोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ पृथक्त्व सागर है। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्कका अन्तरकाल भोधके समान है। शेष प्रकृतियोंका
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