Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपयडिविहत्तीए सणिणयासो सो मिच्छत्त-सम्मामि०-अणंताणुनंधिचउक्काणं सिया विहत्तिओ सिया अविहत्तिओ । सेसाणं पयडीणं णियमा विहत्तिओ । एवं सम्मामि० । णवरि, सम्मत्तस्स दो भंगा।
६१४३. अणंताणुबंधिकोधस्स जो विहत्तिओ, सो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सिया० विहत्ति०, सिया अविहत्तिः। सेसाणं णियमा विहत्तिओ। एवमणंताणुबंधिमाण-मायालोहाणं । अपञ्चक्खाणावरणकोहस्स जो विहात्तिओ सो मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०अणंताणुबंधिचउक्क० सिया विहत्ति०, सिया अविहत्ति० । सेसाणं पय० णियमा विहत्ति। एवं सत्तकसाय० । कोहसंजलणाए विहत्तिओ मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-बारसकसाय-णवणोकसायाणं सिया विहत्तिओ, सिया अविहत्तिओ। तिहं संजलणाणं णियमा बिहत्तिओ। माणसंजलणाए जो विहत्तिओ सो माया-लोभसंजलणाणं णियमा बिहत्तिओ। सेसाणं सिया विहत्ति०, सिया अविहत्ति० । मायासंजलण० जो विहत्तिक लोभसंज० णियमा विहत्तिओ । सेसाणं पयडीणं सिया विहत्ति० सिया अविहै वह मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला कदाचित है और कदाचित् नहीं है। परन्तु इसके शेष प्रकृतियोंकी विभक्ति नियमसे है। सम्य
प्रतिके समान सम्यग्मिथ्यात्वका कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सम्यगमिथ्यात्वकी विभक्तिवालेके सम्यक्प्रकृतिके दो भंग होते हैं अर्थात् वह कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला है और कदाचित् नहीं है ।
६ १४३. जो जीव अनन्तानुबन्धी क्रोधकी विभक्तिवाला है वह सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वकी विभक्तिवाला कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। तथा उसके शेष प्रकतियोंकी विभक्ति नियमसे है। इसीप्रकार अनन्तानुवन्धी मान, माया और लोभकी अपेक्षा भी कथन करना चाहिये । जो जीव अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला कदाचित है और कदाचित् नहीं है । परन्तु उसके शेष प्रकृतियोंकी विभक्ति नियमसे है । इसीप्रकार शेष सात कषायोंकी अपेक्षा कथन करना चाहिये ।
जो जीव क्रोधसंज्वलनकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध आदि बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाला कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। परन्तु वह संज्वलनमान आदि शेष तीन प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो जीव मानसंज्वलनकी विभक्तिवाला है वह माया और लोभसंज्वलनकी विभक्तिवाला नियमसे है। परन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। जो जीव मायासंज्वलनकी विभक्तिवाला है वह लोभसंज्वलनकी विभक्तिवाला नियमसे है। परन्तु वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। जो जीव लोभसंज्वलनकी विभक्तिवाला है वह अपनेसे
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