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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ एइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदियअपज्ज०-सव्वपंचकाय-तसअपज०-मदि-सुदअण्णाणि-विभंग-मिच्छादि०-असण्णीणं वत्तव्यं ।
६१४५. अणुद्दिसादि जाव सव्वसिद्धिविमाणे ति जो मिच्छत्तस्स विहत्तिओ अणंताणु०चउक्क० सिया विह०, सिया अविह० । सेसाणं पय० णियमा विहः । एवं सम्मामिच्छत्तस्स । सम्मत्तस्स जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० सिया विह० सिया अविहत्तिओ। सेसाणं णियमा विह० । अणंताणु कोध० जो विहत्तिओ सो सम्बपय० णियमा विह० । एवं तिण्णं कसायाणं । अपञ्चक्खाणकोध० जो विहत्तिओ सो मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० अणंताणु० चउक्क० सिया विह० सिया अविह० । सेसाणं पय० णियमा विहत्तिओ। एवमेक्कारसकसाय-णवणोकसायाणं ।
६१४६. वेउव्विय० जो मिच्छत्तस्स विहत्तिओ सो सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० नहीं भी है, किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार लब्ध्यपर्यातक मनुष्य, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, सभी प्रकारके पांचों स्थावर काय, त्रस लब्ध्यपर्याप्तक, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवों के कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-इन उपर्युक्त मार्गणाओंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना संभव है। अतः ऊपर जितने विकल्प कहे हैं वे इस अपेक्षासे घटित कर लेना चाहिये ।
६१४५. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान तक प्रत्येक स्थानमें जो जीव मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है वह अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है। इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षासे कथन करना चाहिये । जों सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यगमिभ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है। जो अनन्तानुबन्धी क्रोधकी विभक्तिवाला है वह नियमसे सब प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला है । अनन्तानुबन्धी क्रोधके समान अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी अपेक्षा कथन करना चाहिये । जो अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी विभक्तिवाला है वह मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है। किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है। इसी प्रकार ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा कथन करना चाहिये ।
विशेषार्थ-नौ अनुदिशसे लेकर ऊपर सभी जीव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं। अतः यहां २८, २४, २२ और २१ ये चार विभक्तिस्थान संभव हैं। इसी अपेक्षासे ऊपरके सभी विकल्प घटित कर लेना चाहिये ।
६१४६. वैक्रियिककाययोगियों में जो मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है वह सम्यक्प्रकृति,
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