Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
उत्तरपय डिविहत्तीए सरिणयासो
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साय० । णवरि मिच्छत्तस्स णियमा विहत्तिओ । जो सम्मत्तस्स विहत्तिओ सो अताणुबंधिचउकस्स सिया विहत्ति० सिया अविहत्ति० । सेसाणं पयडीणं नियमा विह० । सम्मामि० जो विहत्तिओ सो सम्मत्त - अनंताणु ० चउक्क० सिया विह० सिया अहि० | सेसाणं पयडीणं णियमा विहत्तिओ । अनंताणुबंधिकोध० जो विहत्तिओ सो सम्मत्त सम्मामि० सिया विह० सिया अविह० । सेसाणं पयडीणं णियमा विहत्तिओ । एवं तिहं कसायाणं । एवं पंचिं० तिरि० जोणिणी० - भवण० वाण बेंतर ० -जोदिसि ० वत्तव्वं । पंचि०तिरि०अपज० मिच्छत्तस्स जो विहत्तिओ सो सम्मत्त सम्मामि० सिया विह० सिया अविह० | सेसाणं पय० णियमा अविहत्तिओ ( विहत्तिओ ) | एवं सोलसक० - वणोक० । णवरि मिच्छत्तस्स णियमा विहत्तिओ । जो सम्मत्तस्स विहत्तिओ सो सव्व० पय० णियमा विहत्तिओ । जो सम्मामि० विहत्तिओ सो सम्मत्त० सिया विह० सिया अविह० । सेसाणं पय० णियमा विह० । एवं मणुसअपजत्त सव्व प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायों की अपेक्षा कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि यह जीव मिध्यात्वकी विभक्तिबाला नियमसे है । जो सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला है वह अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है वह सम्यप्रकृति और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है; किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । जो अनन्तानुबन्धी क्रोधकी विभक्तिवाला है वह सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु वह शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । अनन्तानुबन्धी क्रोधके समान अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायों की अपेक्षा भी कथन करना चाहिये । इसीप्रकार पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिमती, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके कहना चाहिये ।
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विशेषार्थ - इन उपर्युक्त मार्गणाओंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना और अनन्तानुबन्धी चार की विसंयोजना संभव है । अतः ऊपर प्रकृतियोंके सत्त्व और असत्त्व सम्बन्धी सभी विकल्प इसी अपेक्षासे कहे हैं जो उपर्युक्त प्रकार से घटित कर लेना चाहिये ।
पंचेन्द्रियतिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में जो मिध्यात्वकी विभक्तिवाला है वह सम्यप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाला है भी और नहीं भी है । किन्तु शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला नियमसे है । इसीप्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषायकी अपेक्षा कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इसके मिथ्यात्वकी विभक्ति नियमसे है । जो सम्यक्प्रकृतिकी विभक्ति वाला है वह नियमसे सभी प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला है । जो सम्यगमिध्यात्वकी विभक्तिवाला है वह सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला है भी और
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