Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पयडिविहत्ती २
अंतोमुहुत्तं, उक्क वेछावहिसागरोवमाणि देसूणाणि । एवमचक्खु०-भवसिद्धि० वत्तव्वं ।
१३६. आदेसेण णिरयगदीए णेरइएसु बाबीसंपयडीणं णत्थि अंतरं, छण्हं पयडीणं जह० एगसमओ अंतोमुहुत्तं, उक्क० तेत्तीसंसागरोवमाणि देसूणाणि | पढमादि जाव सत्तमि ति सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-अणंताणुबंधिचउक्काणं जह० एगसमओ अंतोमुहुत्तं क्षुदर्शनी और भव्य जीवोंके कहना चाहिये ।।
विशेषार्थ-सामान्यसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायका अन्तरकाल नहीं पाया जाता है, क्योंकि इन प्रकृतियोंका अभाव हो जाने पर पुनः इनकी उत्पत्ति नहीं होती है। जो उपशमसम्यक्त्वके सन्मुख है उसके उपशमसम्यक्त्व के प्राप्त होनेके उपान्त्य समयमें यदि सम्यमिथ्यात्व या सम्यक्प्रकृतिकी उद्वेलना हो जाय अनन्तर एक समय मिथ्यात्वके साथ रहकर द्वितीय समयमें उपशम सम्यक्त्व प्राप्त हो तो उसके सम्यक्प्रकृति
और सम्यग्मिथ्यात्वका एक समय अन्तरकाल प्राप्त होता है। उक्त दोनों प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल जो देशोन अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन बताया है सो यहां देशोन पदसे पल्योपमका असंख्यातवां भाग काल लेना चाहिये, क्योंकि उपशमसम्यक्त्वके अनन्तर मिथ्यात्व में जाकर इतने कालके द्वारा इन दोनों प्रकृतियोंकी उद्वेलना होकर अभाव होता है। जो उपशमसम्यग्दृष्टि अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके पुन: उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवली शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त होता है उसके अनन्तानुबन्धीका जपन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। जिस जीवने उपशमसम्यक्त्वके कालके मीतर अतिलघु अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना कर ली है पुनः उपशमसम्यक्त्वके अनन्तर वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त कर लिया है, और अन्तर्मुहूर्त कम छयासठ सागर वेदकसम्यक्त्वका काल व्यतीत होनेपर मिश्रगुणस्थानमें अन्तर्मुहूर्त व्यतीतकर पुनः वेदकसम्यक्त्व प्राप्त कर लिया है तथा इस दूसरी वार प्राप्त हुए वेदकसम्यक्त्वके उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कम छयासठ सागरके व्यतीत होनेपर मिथ्यात्वमें जाकर अनन्तानुबन्धीका सत्त्व प्राप्त कर लिया है उसके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक सौ बत्तीस सागर होता है। इसप्रकार ऊपर ओघकी अपेक्षा जो अन्तरकाल कहा है अचक्षुदर्शनी और भव्य जीवोंके उक्त प्रकृतियोंका अन्तरकाल उतना ही जानना चाहिये।
६१३६.आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें बाईस प्रकृतियोंका अन्तर काल नहीं है। तथा शेष छह प्रकृतियोंमेंसे सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । तथा छहों प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर है । पहली पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक नरकमें सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वका जघन्य अन्तरकाल एक
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