Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ पय डिविहत्ती २
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खइयसम्मादिट्टीसु एकबी सपय० विह० जह० अंतोमुहुत्तं उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । वेदयसम्मादिट्ठीसु मिच्छत्त सम्मामि० अणंताणु० चउक्क० विहत्ति ० केव० १ जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० छावहि सागरोवमाणि देणाणि । सम्मत्त बारसकसायraणोकसाहित्ति केव० ९ जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क छावहिसागरोवमाणि । उवसमसम्मादिट्ठी अद्यावी संपयडीणं विहत्ति० के ० १ जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं । एवं सम्मामिच्छते वत्तव्वं । सासणे अठ्ठावीसपय० विह० जह० एगसमओ, उक्क० छ आवलियाओ । सणि० पुरिसवेदभंगो । णवरि, मिच्छत्तादीणं जह० खुद्दाभवग्गहणं । असणि० एइंदियभंगो । आहारि० मिच्छत्त बारसकसाय- णवणोक० विह० केव० सम्यग्दृष्टियों में इक्कीस प्रकृतियों का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है । वेदकसम्यग्दृष्टियों में मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका काल कितना है ? जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल देशोन छयासठ सागर है । सम्यक्प्रकृति, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका काल कितना है ? जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल छ्यासठ सागर है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में अट्ठाईस प्रकृतियोंका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनों काल अन्तर्मुहूर्त हैं । सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में सभी प्रकृतियोंका काल उपशमसम्यग्दृष्टियोंके समान कहना चाहिये । सासादनमें अट्ठाईस प्रकृतियों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवली है ।
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विशेषार्थ - जिस सम्यक्त्वका जितना जघन्य और उत्कृष्ट काल है उस सम्यक्त्वमें संभव सभी प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल उतना जानना चाहिये । केवल वेदकसम्यक्त्वकी अपेक्षा प्रकृतियोंके उत्कृष्ट कालमें कुछ विशेषता है । यद्यपि वेदकसम्यक्त्वका उत्कृष्ट काल पूरा छयासठ सागर बताया है पर इसमें कृतकृत्य वेदकका काल भी सम्मिलित है, अतः वेदकसम्यक्त्वके काल मेंसे कृतकृत्य वेदकके कालको कम कर देने पर वेदकसम्यक्त्वका जो शेष काल रहता है वह सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल है । इसमें से सम्यग्मिध्यात्वके क्षपणकालको कम कर देने पर जो काल शेष रहता है वह मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल है । इसमें से मिथ्यात्वके क्षपणकालको कम कर देने पर जो काल शेष रहता है वह अनन्तानुबन्धीका उत्कृष्ट काल है । सम्यक्प्रकृति, बारह कषाय और नौ नोकषायका वेदक सम्यक्त्वकी अपेक्षा जो पूरा छयासठ सागर काल बतलाया है वह सुगम है, क्योंकि कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि के भी इन प्रकृतियोंका सत्त्व पाया जाता है और कृतकृत्यवेदक के कालसहित वेदकसम्यक्त्वका उत्कृष्ट काल पूरा छयासठ सागर है ।
संज्ञी जीवोंके सभी प्रकृतियों का काल पुरुषवेदीके कहे गये सभी प्रकृतियों के कालके समान है । इतनी विशेषता है कि संज्ञी जीवोंके मिध्यात्व आदिक बाईस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण है । असंज्ञी जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल एकेन्द्रियोंके कहे
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