Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए अंतराणुगमो
१२५ उक्क० सगष्टिदी देसूणा । मिच्छत्त०-बारसकसाय-णवणोक० णत्थि अंतरं ।
६१३७. तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमोघभंगो। अणंताणुबंधिचउक्क विहत्ति० अंतरं जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसूणाणि । सेसाणं पयडीणं णत्थि अंतरं । पंचिदियतिरिक्ख-पंचिं०तिरि०पञ्ज०-पंचितिरि०जोणिणी० मिच्छत्त-बारसकसाय-णवणोकसाय विहत्ति० केव० ?णत्थि अंतरं । सम्मत्त-सम्मामि०विहत्ति० अंतरं केव० ? जह० एगसमओ, उक्क० तिण्णि पलिदो० पुवकोडिपुधत्तेणसमय और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त है । तथा छहों प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपने अपने नरककी स्थितिप्रमाण है। तथा सातों नरकोंमें बाईस प्रकृतियोंका अन्तरकाल नहीं है।
विशेषार्थ-सम्यकप्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य अन्तरकाल जिस प्रकार सामान्यसे घटित करके लिख आये हैं उसी प्रकार यहां सर्वत्र जान लेना चाहिये । जिसके सम्यक्प्रकृति या सम्यक्मिथ्यात्वकी उद्वेलनामें एक समय शेष है ऐसा जीव विवक्षित किसी एक नरकमें अपने नरककी उत्कृष्ट आयु लेकर उत्पन्न हुआ और वहां उसने दूसरे समयमें सम्यक्प्रकृति या सम्यग्मिथ्यात्वका अभाव कर दिया अनन्तर जीवन भर वह जीव मिथ्यात्वके साथ रहा किन्तु जीवनके अन्तमें अन्तर्मुहूर्त कालके शेष रहने पर उसने उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त करके उक्त दोनों प्रकृतियोंकी सत्ता प्राप्त कर ली उसके उस उस नरककी अपेक्षा उक्त दोनों प्रकृतियोंका उक्त प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल पाया जाता है। अनन्तानुबन्धीका उत्कृष्ट अन्तरकाल भी इसीप्रकार घटित करना चाहिये। पर इतनी विशेषता है कि प्रारंभमें पर्याप्त अवस्थाके होनेपर सम्यक्त्व उत्पन्न कराके अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करा लेना चाहिये, तब जाकर अनन्तानुबन्धीका अन्तरकाल प्रारंभ होता है और जीवन भर वेदकसम्यक्त्वके साथ रखकर मरणके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वमें ले जाना चाहिये। सातवें नरकमें मरनेसे अन्तर्मुहूर्त पहले मिथ्यात्वमें ले जाना चाहिये । सातवें नरकमें जो उत्कृष्ट अन्तरकाल है वही सामान्यसे नारकियोंके उक्त छह प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिये। शेष बाईस प्रकृतियोंका अन्तरकाल नहीं पाया जाता, यह सुगम है।
१३७. तियंचगतिमें तिथंचोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तरकाल ओघके समान है। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्य है। तथा शेष बाईस प्रकृतियोंका अन्तरकाल नहीं है। पंचेन्द्रियतियंच, पंचेन्द्रियतिथंच पर्याप्त और पंचेन्द्रियतिथंच योनिमती जीवोंके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायका अंतरकाल कितना है ? इन बाईस प्रकृतियोंका अंतरकाल नहीं है। सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिध्यात्वका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर
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