Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
उत्तरपयडिविहत्तीए कालाणुगमो ६ १२६. वेदाणुवादेण इत्थिवेदएसु अणंताणुबंधिचउक्क विह० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । सम्मत्त-सम्मामि० विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० पणवण्णपलिदो० सादिरेयाणि । सेसबावीसंपयडीणं विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । पुरिसवेदएसु सम्मत्त-सम्मामि० विह० जह० एगसमओ, उक्क० वेछावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । सेसछब्बीसपयडीणं विहत्ति० जह० अंतोमुहुत्तं उक्क०सागरोवमसदपुध । णवरि अणंताणु० जह० एगसमओ । णqसयवेदेसु सम्मत्त०-सम्मामि० विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसंसागरोवमाणि सादिरेयाणि । सेसाणं पयडीणं विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० अणंतकालो असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अवगदवेदएसु चउबीसंपयडीणं विहत्ति० केव० ? जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवमकसाय-सुहुमसांपराय०-जहाक्खाद० वत्तव्वं । हूर्त काल तक रहता है पर जहां जहां इन छब्बीस प्रकृतियोंका क्षय होता है वहां वहां क्षय होनेके अन्तिम समयमें मनोयोग या वचनयोगसे काययोगके प्राप्त होने पर काययोगके सद्भावमें उन प्रकृतियोंका सत्त्व एक समय तक ही दिखाई देता है इसलिये सामान्य काययोगमें एक समय सम्बन्धी प्ररूपणा बन जाती है।
६१२९. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल सौ पल्यपृथक्त्व है। सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक पचपन पल्य है। तथा शेष बाईस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल सौ पल्यपृथक्त्व है । पुरुषवेदियोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक एक सौ बत्तीस सागर है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल सौ सागर पृथक्त्व है। इतनी विशेषता है कि इनके अनन्तानुबन्धीका जघन्य . काल एक समय है। नपुंकवेदियोंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। तथा अपगतवेदियोंमें चौबीस प्रकृतियोंका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय
और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिक संयत और यथाख्यात संयत जीवोंके चौबीस प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहना चाहिये।
विशेषार्थ-चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक स्त्रीवेदी जीव अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला हुआ और दूसरे समयमें मर कर अन्य वेवाला हो गया उसके अनन्तानुबंधीका जघन्य काल एक समय पाया जाता है। स्त्री वेदके साथ एक जीव निरन्तर सौ पल्यपृ
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