Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ असंखे भागो । सेसपयडीणं विहत्ति० जह० खुद्दा०, उक्क० कम्महिदी । बादरणिगोदजीवपजत्ताणं बादरएइंदियपजत्तभंगो । बादरणिगोदजीवअपजत्ताणं बादरएइंदिय अपजत्तभंगो। सुहुमणिगोदाणं सुहुमपुढविभंगो।
६ १२७. तसकायियेसु सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त० विहात्त० जह० एनसमओ, उक्क० बेछावहिसागरोवमाणि तीहि पलिदोवमस्सअसंखेञ्जदिभागेहि सादिरेयाणि । सेसछब्बीसंपयडीणं विहत्ति० जह० खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० बेसागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्तेण महियाणि । एवं तसकायियपज्जत्ताणं पि वत्तव्वं । णवरि छन्वीसंपयडीणं विहत्ति० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० बेसागरोवमसहस्साणि । तसकाइयअपजसाणं पंचिंदियअपञ्जत्तमंगो। प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल कर्मस्थितिप्रमाण है। बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है। बादर निगोद अपर्याप्त जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है। तथा सूक्ष्म निगोद जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीवोंके समान है।
विशेषार्थ-निगोद जीवोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल ढाई पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है, अतः इनके छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल भी उतना ही है। तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग उद्वेलना की अपेक्षा कहा है जिसका स्पष्टीकरण ऊपर कर आये हैं। बादर निगोद जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल यहां पर अलगसे बताया है पर बादर पृथिवीकायिकके कालसे उसमें कोई विशेषता नहीं है, अतः बादर पृथिवीकायिकके कालका जिसप्रकार पहले खुलासा कर आये हैं उसीप्रकार यहां समझ लेना चाहिये। इसीप्रकार बादर निगोद पर्याप्त आदिके सभी प्रकृतियोंका काल बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त बादिके समान जान लेना चाहिये ।
६१२७.त्रसकायिक जीवों में सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके तीन असंख्यातवें भागोंसे अधिक एक सौ बत्तीस सागर है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागर है। इसीप्रकार त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंके भी कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट काल दो हजार सागर है। त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके सभी प्रकृतियोंका काल पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके समान है।
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