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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिविहत्ती २ गरोवमाणि तीहि पलिदोवमस्स असंखे भागेहि सादिरेयाणि । पुच्वं परूविदछव्वीसपयडीसु अणंताणुबंधिचउक्कस्स विहत्तीए जहण्णकालो एगसमओ ति किण्ण परूविदो ? ण, चउबीससंतकम्मिअ-उवसमसम्मादिहिस्स एयसमयं सासणगुणेण परिपदस्स विदियसमए चेव कालं कादण एइंदिएसु उप्पादासंभवादो। कुदो एवं णव्वदे? परमगुरूवएसादो। तदो अंतोमुहुत्तसंजुत्तस्सेव तत्थुप्पादो त्ति घेत्तव्वं । अथवा सव्वत्थ उपजमाणसासणस्स एगसमओ वत्तव्यो । पंचिंदियअपजत्तएसु सम्मत्त-सम्मामि० विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहत्तं । छव्वीसंपयडीणं विहत्ति० जह खुद्दा०, उक्क० अंतोमुहुत्तं ।
शंका-ऊपर जो छब्बीस प्रकृतियां कहीं हैं उनमेंसे अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य काल एक समय क्यों नहीं कहा ?
समाधान-नहीं, क्योंकि चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो उपशमसम्यग्दृष्टि जीव है वह एक समय तक सासादन गुणस्थानके साथ रहकर और दूसरे समयमें ही मर कर एकेन्द्रियोंमें नहीं उत्पन्न होता है, इसलिये पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका जघन्य काल एक समय नहीं कहा ।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है कि चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव एक समय सासादन गुणस्थानमें रह कर और दूसरे समयमें मर कर एकेन्द्रियों में नहीं उत्पन्न होता है ?
समाधान-परम गुरुके उपदेशसे जाना जाता है। · अत: चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपशमसम्यग्दृष्टि जीव जब अनन्तानुबन्धी चतुष्कके साथ अन्तर्मुहूर्त काल तक रह लेता है तभी वह मर कर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हो सकता है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये । अथवा जिन आचार्योंके मतसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियादि सभी पर्यायोंमें उत्पन्न होता है उनके मतसे पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तजीवोंके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका एक समय जघन्य काल कहना चाहिये ।
विशेषकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तियंचका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और पंचेन्द्रियपर्याप्त तिथंच तथा योनिमतीतिर्यचका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। ___लब्ध्यपर्याप्तक पंचेन्द्रियोंके सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा शेष छब्बीस प्रकृतियोंका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-सामान्य पंचेन्द्रियका पंचेन्द्रिय पर्यायमें रहनेका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्वसे अधिक हजार सागर है। पंचेन्द्रियपर्याप्तजीवका पंचेन्द्रियपर्याप्त पर्यायमें निरन्तर रहनेका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल
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