Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ वयस्स । अविहत्ती कस्स ? अण्ण खवयस्स । वेदगसम्मादिहीसु मिच्छत्त-सम्मामि० विहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स । अविहत्ती कस्स ? दंसणमोहखवयस्स । अणंताणुबंधिचउक्क० विहत्ती कस्स ? अण्ण अविसंजोजिदअणंताणुबंधिचउक्कस्स । अविहत्ती कस्स? अण्ण० विसंजोइदअणताणु० चउक्कस्स । सेसाणं पयडीणं विहत्ती कस्स ? अण्ण । उवसमसम्मादिट्टीसु अणंताणु०चउक्क० विहत्ती कस्स ? अण्ण० अविसंजोयिदस्स । अविहत्ती कस्स ? विसंजोयिदअणंताणुबंधिचउक्स्स । सेसाणं पयडीणं विहत्ती कस्स ? अण्ण । सासणसम्मादिहीसु सव्वपयडीणं विहत्ती कस्स ? अण्ण। सम्मामि० अणंताणु०चउक्क विहत्ती अविहत्ती च कस्स ? अण्ण० । सेसाणं पयडीणं विहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स।
एवं सामित्तं समत्तं । कषाय और नौ नोकषायकी विभक्ति है। अविभक्ति किसके है ? जिसने इनका क्षय कर दिया है उसके इनकी अविभक्ति है। वेदकसम्यग्दृष्टियों में मिथ्यात्व और सम्यमिथ्यात्वकी विभक्ति किसके है ? किसी भी वेदकसम्यग्दृष्टिके है। अविभक्ति किसके है ? जिसने दर्शनमोहनीयकी मिथ्यात्व और सम्यगमिथ्यात्व प्रकृतिका क्षय कर दिया है उसके अविभक्ति है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्ति किसके है ? जिसने अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना नहीं की है ऐसे किसी भी वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्ति है। अविभक्ति किसके है ? जिसने अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना की है उसके अविभक्ति है। शेष प्रकृतियोंकी विभक्ति किसके है ? किसी भी वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके है। उपशम सम्यग्दृष्टियों में अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्ति किसके है ? जिसने अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना नहीं की है उस उपशमसम्यग्दृष्टिके विभक्ति है । अविभक्ति किसके है ? जिसने अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना कर दी है उस उपशमसम्यग्दृष्टिके अविभक्ति है। शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिं किसके है ? किसी भी उपशम सम्यग्दृष्टिके शेष प्रकृतियोंकी विभक्ति है । सासादन सम्यग्दृष्टियों में सभी प्रकृतियोंकी विभक्ति किसके है ? किसी भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके सभी प्रकृतियोंकी विभक्ति है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्ति और अविभक्ति किसके है ? किसी भी सम्यगमिथ्यादृष्टि जीवके है। शेष प्रकृतियोंकी विभक्ति किसके है ? किसी भी सम्यमिथ्यादृष्टि जीवके शेष प्रकृतियोंकी विभक्ति है।
विशेषार्थ-सभी अभव्योंके सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यास्वको छोड़ कर शेष छब्बीस प्रकृतियोंका ही सत्त्व होता है। क्षायिकसम्यग्दृष्टिके तीन दर्शनमोहनीय और चार अनन्तानुबन्धीका सत्त्व नहीं होता। शेष इक्कीस प्रकृतियोंका सत्त्व होता भी है और नहीं भी होता । वेदकसम्यग्दृष्टिके अनन्तानुबन्धी चतुष्क, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वको
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