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गा० २२]
उत्तरपयडिविहत्तीए कालाणुगमो
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६ १२१. पंचिंदियतिरि०अपज० छव्वीसं पयडीणं विहत्ती केवचिरं कालादो होदि ? जह० खुद्दाभवगहणं । सम्मत्त०-सम्मामि० जह० एगसमओ। उक० सव्वासिं सत्त्वकालमें विशेषता है। वह इस प्रकार है-उक्त छहों प्रकृतियोंका जघन्य सत्त्वकाल एक समय जिस प्रकार नरकगतिमें घटित कर आये हैं उसी प्रकार यहां तिर्यंचगतिमें भी घटित कर लेना चाहिये । तथा सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वका उत्कृष्ट सत्त्वकाल साधिक तीन पल्य है। क्योंकि उक्त दोनों प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो मिथ्यादृष्टि तिर्यंच दान या दानकी अनुमोदनाके माहात्म्यसे उत्तम भोगभूमिमें उत्पन्न होकर और वहां पर उक्त दोनों प्रकृतियोंकी उद्वेलना होनेके पहले ही सम्यक्त्वको प्राप्त कर लेता है उसके साधिक तीन पल्य काल तक उक्त दोनों प्रकृतियोंका सत्त्व पाया जाता है। यहां साधिकसे पूर्वकोटि पृथत्व लेना चाहिये। विशेषकी अपेक्षा पंचेन्द्रियतिर्यचका जघन्य काल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल पंचानवे पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य है। तथा पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच और योनिमती तिर्यंचका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल क्रमसे सेंतालीस और पन्द्रह पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य है, अतः जिन प्रकृतियोंका तिथंचगतिमें कभी भी अभाव नहीं होता उन बाईस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल पूर्वोक्त जहां जितना जघन्य और उत्कृष्ट काल संभव है उतना कहा है। तथा सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारका उत्कृष्ट काल जहां जितना उत्कृष्ट काल है उतना ही है, क्योंकि पूर्वोक्त काल तक जीव पंचेन्द्रिय तिर्यच आदि पर्यायोंके साथ मिथ्यात्व गुणस्थानमें रह सकता है और मिथ्यात्व गुणस्थानमें अनन्तानुबन्धीका अभाव नहीं है, अतः अनन्तानुबन्धीका उत्कृष्ट काल पूर्वोक्त तीन प्रकारके तियचोमेंसे जिसका जितना उत्कृष्ट काल है उतना बन जाता है। तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिध्यात्वका उत्कृष्ट काल पूर्वोक्त ही है, क्योंकि कहीं इन दोनों प्रकृतियोंकी उद्वेलना होनेके पूर्व ही सम्यक्त्व उत्पन्न करके उनकी सत्त्वस्थिति बढ़ा कर और कहीं वेदकसम्यक्त्वके साथ रह कर जिस तिर्यचका जितना उत्कृष्ठ काल कहा है उतने काल तक इन दोनों प्रकृतियोंकी धारा न टूटते हुए सत्ता पाई जा सकती है। तथा पूर्वोक्त तीन प्रकारके तिर्यचोंके इन छहों प्रकृतियोंका जघन्य सत्त्व काल एक समय है जिसका उल्लेख नरक गतिमें इनका जघन्य काल कहते समय कर आये हैं, अत: उसीप्रकार यहां समझ लेना चाहिये। सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनीके अट्ठाईस प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल पंचेन्द्रिय तिथंच आदिके समान है इसका यह अभिप्राय है कि पूर्वकोटिपृथक्त्वकी गणनाको छोड़कर शेष कालनिर्देश दोनोंका समान है। परन्तु पूर्वकोटिपृथक्त्वसे सामान्य मनुष्योंके सेंतालीस, पर्याप्त मनुष्यों के तेईस और मनुष्यनियोंके सात पूर्वकोटि लेना चाहिये ।
६१२१. पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तोंके छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण है। सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वका
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