Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए सामित्ताणुगमो
६७ ६११६. आभिणि-सुद०-ओहि मिच्छत्त-सम्मत-सम्मामिच्छत्त-अणंताणुबांधिचउक्क० विहत्ती कस्स ? अण्ण० अक्खीणदंसणमोहणीयस्स । अविहत्ती कस्स ? अण्ण खीणदंसणमोहस्स । सेसाणं पयडीणं ओघमंगो। णवरि विहत्ती अण्ण । एवं मणपज०-संजद-सामाइय-छेदो०-ओहिदसण-सम्मादिहि त्ति वत्तव्वं । णवरि सामाइय०[छेदो०] लोभ० अविहत्तीणत्थि। सुहुमसांपराइयसंजदेसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०एक्कारसक०-णवणोक० विहत्ती कस्स ? अण्ण उवसामयस्स । अविहत्ती कस्स? अण्ण खवयस्स । णवरि दंसणतियस्स अविहत्ती अस्थि उवसामगस्स वि। लोभ० विहत्ती कस्स ? अण्ण० उवसामयस्स वा खवयस्स वा । अभवसिद्धि० छब्बीसण्हं पयडीणं विहत्ती कस्स ? अण्ण ।
६ ११७. खइयसम्माइटीसु बारसक०-णवणोक० विहत्ती कस्स ? अण्ण० अक्ख
६ ११६. मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यत्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्ति किसके है ? जिसने दर्शनमोहनीयका क्षय नहीं किया है ऐसे किसी भी मतिज्ञानी आदि जीवके है। अविभक्ति किसके है ? जिसने उनका क्षय कर दिया है ऐसे किसी भी मतिज्ञानी आदि जीवके है। तथा इनके शेष प्रकृतियोंका कथन ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि शेष इक्कीस प्रकृतियोंकी विभक्ति किसी भी मतिज्ञानी आदि जीवके है। इसी प्रकार मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सामायिक और छेदोपस्थापना संयत जीवके लोभकषायकी अविभक्ति नहीं है।
सूक्ष्मसांपरायिकसंयतोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यगमिथ्यात्व, संज्वलन लोभके बिना ग्यारह कषाय और नौ नोकषायकी विभक्ति किसके है ? किसी भी उपशामकके है। अविभक्ति किसके है ? किसी भी क्षपकके है। इतनी विशेषता है कि तीन दर्शनमोहनीयकी अविभक्ति उपशामकके भी है। लोभकी विभक्ति किसके है ? किसी एक उपशामक या क्षपक सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवके लोभकी विभक्ति है।
विशेषार्थ-क्षपक सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवके एक सूक्ष्म लोभका ही सत्त्व है शेष सबका असत्त्व है। तथा उपशामक सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवके अनन्तानुबन्धी चतुष्कके बिना चौबीस प्रकृतियोंका और क्षायिकसम्यग्दृष्टि उपशामक सूक्ष्मसांपरायिक जीवके अनन्तानुबन्धी चार और तीन दर्शनमोहनीयके बिना इक्कीस प्रकृतियोंका सत्त्व होता है।
अभव्य जीवोंमें छब्बीस प्रकतियोंकी विभक्ति किसके है ? किसी भी अभव्यके है।
६११७. क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में बारह कषाय और नौ नोकषायकी विभक्ति किसके है ? जिसने इन इक्कीस प्रकृतियोंका क्षय नहीं किया है ऐसे किसी भी क्षायिकसम्यग्दृष्टिके बारह
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