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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ ____११३. ओरालियमिस्स० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-अणंताणुबंधिचउक्क० ओघभंगो। बारसकसाय-णवणोकसायविहत्ती कस्स ! अण्णदरस्स सम्मादि० मिच्छादिहिस्स वा। अविहत्ती कस्स ? अण्णद० सजोगिकेवलिस्स । एवं कम्मइय० अणाहारि त्ति वचव्वं । णवरि, बारसकसाय-णवणोक० अविहत्तीए [पदर] लोगपूरणगदो सजोगी अजोगी च सामिणो।
११४. इत्थिवेदेसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-अणंताणुबंधिचउक्क० ओघभंगो। अहक०-णqसयविहत्ती कस्स ? अण्णद० सम्मादिहि० मिच्छादिहिस्स वा। अविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स खवयस्स । चत्तारिसंजलण-दोवेद०-छण्णोक० विहत्ती प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे है। ____६११३. औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सम्यकत्वप्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा कथन ओघके समान है। तथा बारह कषाय और नौ नोकषायविभक्ति किसके है ? किसी भी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि औदारिक मिश्रकाययोगीके बारह कषाय और नौ नोकषाय की विभक्ति है । बारह कषाय और नौ नोकषायकी अविभक्ति किसके है ? किसी भी सयोगकेवली औदारिकमिश्रकाययोगी जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायकी अविभक्ति है। इसी प्रकार कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगियों में बारह कषाय और नौ नोकषाय की अविभक्तिके स्वामी प्रतर और लोकपूरण समुद्भातको प्राप्त सयोगकेवली जीव हैं। तथा अनाहारकोंमें बारह कषाय और नौ नोकषायकी अविभक्तिके स्वामी प्रतर और लोकपूरण समुद्धातको प्राप्त सयोगकेवली और अयोगकेवली हैं।
विशेषार्थ-औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग पहले, दूसरे चौथे और तेरहवें गुणस्थानमें होता है । तथा अनाहारक अवस्था पूर्वोक्त चार गुणस्थानों में और चौदहवें गुणस्थानमें होती है। तथा मोहनीयका सत्व बारहवें गुणस्थानसे नहीं है, क्योंकि दसवेंके अन्तमें उसका समूल नाश हो जाता है, अतः उक्त मार्गणाओंमें संभव तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानकी अपेक्षा इक्कीस मोहप्रकृतियोंका असत्त्व कहा है। तथा शेषके इनका सत्त्व कहा है। शेष सात प्रकृतियोंकी अपेक्षा सत्त्वासत्त्व जिस प्रकार ओघमें कहा है उसी प्रकार वहां भी जान लेना चाहिये।
६११४. स्त्रीवेदियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका कथन ओषके समान है। तथा आठ कषाय और नपुंसक वेदकी विभक्ति किसके है ? किसी भी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवके आठ कषाय और नपुंसक वेदकी विभक्ति है। आठ कषाय और नपुंसकवेदकी अविभक्ति किसके है ? किसी भी क्षपक स्त्रीवेदी जीवके आठ कषाय और नपुंसकवेदकी अविभक्ति है। तथा चार संज्वलन, दो वेद और छह
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