Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जाहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
६ ८५. देवगई देवेसु विहात्ति० के० खेत्तं पोसिदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अ णव चोहसभागा वा देसूणा । एवं सोहम्मीसाण देवाणं वत्तन्वं । भवणवासिय वाणवेंतर- जोइसियाणं केव० खेत्तं पोसिदं १ लोगस्स असंखेज्जदिभागो अह अड्ड पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके स्पर्शनके समान है । तथा मोहनीय अविभक्तिवाले उक्त तीनों प्रकार के मनुष्यों का स्पर्शन ओके समान है ।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सर्वलोक कह आये हैं वही मोहनीय कर्मसे युक्त उक्त तीन प्रकारके मनुष्योंका समझना चाहिये । तथा मोहनीय कर्म से रहित उक्त तीनों प्रकारके मनुष्योंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभाग प्रमाण और सर्वलोक जानना चाहिये ।
१८५. देवगति में देवों में मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग, देशोन आठ बटे चौदह राजु और देशोन नौ बटे चौदह राजु क्षेत्र स्पर्श किया है । सौधर्म और ऐशान स्वर्गके देवोंका स्पर्शन इसी प्रकार कहना चाहिये ।
विशेषार्थ - देवोंने वर्तमान कालमें स्वस्थानस्वस्थान, विहारवःस्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणान्तिक और उपपाद पदकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । स्वस्थानस्वस्थानपदकी अपेक्षा अतीतकाल में भी लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा अतीतकाल में विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदोंकी अपेक्षा देशोन आठ वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है, क्योंकि, नीचे तीसरी पृथिवी तक और ऊपर अच्युत कल्प तक देवोंका विहार देखा जाता है । यहां देशोनसे तीसरी पृथिवीके अन्तिम एक हजार योजन मोटे क्षेत्रका और देवोंके द्वारा अगम्य प्रदेशका ग्रहण किया है। मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा देशोन नौ वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । क्योंकि, मारणान्तिक समुद्धातमें देवोंका मध्य लोकसे नीचे दो राजु और ऊपर सात राजु इस प्रकार नौ राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श देखा जाता है । उपपाद पदकी अपेक्षा देशोन छह वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । यद्यपि मध्य लोकसे नीचे अव्वहुलभाग तक और ऊपर अच्युत कल्पसे आगे सातवीं राजुमें भी देवोंका उपपाद देखा जाता है, फिर भी वह सब मिलाकर देशोन छह वटे चौदह राजुसे अधिक क्षेत्र नहीं होता है, क्योंकि, सर्वत्र देवोंका उत्पाद आनुपूर्वीगत प्रदेशोंके अनुसार ही होता है। सौधर्म और ऐशान कल्पके देवोंका स्पर्शन उपपादको छोड़कर बाकी 'सब सामान्य देवोंके स्पर्शनके समान ही है ।
मोहनीय विभक्तिवाले भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग कुछ कम साढ़े तीन वटे चौदह राजु, कुछ कम 7 आठ व चौदह राजु और कुछ कम नौ वढ़ें चौदह राजु प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है ।
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