Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
८६. पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्त-तस-तसपज्जत्त-विहत्ति० केव० खेत्तं पोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठ चोद्दस भागा वा देसूणा, सव्वलोगो वा । अविहत्ति ० ha ० १ ओघभंगो | एवं पंचमण० - पंचवचि० - चक्खुदंसण० सण्णित्ति वत्तव्वं । णवरि, अविहत्ति • खेत्तभंगो ।
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विशेषार्थ - - उक्त कल्पवासी देवोंने वर्तमान कालमें संभव सभी पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। तथा अतीत कालमें स्वस्थानस्वस्थानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदोंकी अपेक्षा देशोन छह वटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि इन आनतादि देवोंका चित्रा पृथिवीके ऊपर के तलसे नीचे गमन नहीं पाया जाता है । उपपादकी अपेक्षा आनत-प्राणत कल्पवासी देवोंने कुछ कम साढ़े पांच वटे चौदह राजु और आरण-अच्युतकल्पवासी देवोंने कुछ कम छह वटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, मध्यलोकसे आनत-प्राणत कल्प साढ़े पांच राजु और आरण-अच्युत कल्प छह राजु है ।
९ ८६. पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रसपर्याप्त जीवोंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग, त्रस नालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और सर्वलोक क्षेत्र स्पर्श किया है । तथा मोहनीय अविभक्तिवाले उक्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ओघके समान स्पर्श है । इसी प्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन पांचों मनोयोगी आदि जीवोंके मोहनीय अविभक्तिकी अपेक्षा स्पर्शन क्षेत्र के समान है।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रस पर्याप्तकों में मोह विभक्तिवालेजीवने वर्तमान में संभव सभी पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा अतीत कालमें स्वस्थानस्वस्थान, तैजस समुद्धात और आहारकसमुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान, वेदना समुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातकी अपेक्षा त्रस नालीके चौदह भागों में से कुछकम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा मारणान्तिक समुद्धात और उपपादकी अपेक्षा सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिकसमुद्धात करते हुए उक्त जीव सर्वलोकमें पाये जाते हैं । तथा सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमेंसे पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले जीव पहले समय में समस्त लोक में पाये जाते हैं । मोह अविभक्तिवाले उक्त जीवोंका वर्तमानकालीन और अतीतकालीन, स्पर्श ओघके समान है । अतः ओघप्ररूपणा में जो खुलासा किया है वह यहां समझ लेना चाहिये । विशेष बात यह है कि ओघप्ररूपणा में मोह अविभक्तिवाले जीवों में सिद्धों का
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