Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [पयडिविहत्ती २ * तदो उत्तरपयडिविहत्ती दुविहा, एगेगउत्तरपयडिविहत्ती चेव पयडिट्ठाण उत्तरपयडिविहत्ती चेव ।
६६७. अठ्ठावीस मोहपयडीणं जत्थ पुध पुध परूवणा कीरदि सा एगेगउत्तरपयडिविहत्ती णाम । जत्थ अट्ठावीस-सत्तावीस-छन्वीसादिपयडिसंतहाणाणं परूवणा कीरदि सा पयडिहाण-उत्तरपयडिविहत्ती णाम । एवमुत्तरपयडिविहत्ती दुविहा चेव होदि अण्णिस्से असंभवादो।। ___ * तत्थ एगेग-उत्तरपयडिविहत्तीए इमाणि अणियोगद्दाराणि । तं जहा एगजीवेण सामित्तं कालो अंतरं, णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो परिमाणाणुगमो खेत्ताणुगमो पोसणाणुगमो कालाणुगमो अंतराणुगमो सणियासो, अप्पाबहुए त्ति । ___६६८. एवमेत्थ एक्कारस अणियोगद्दाराणि भवंति। संपहि समुक्त्तिणा सव्वविहत्ती णोसव्वविहत्ती उक्कस्सविहत्ती अणुक्कस्सविहत्ती जहण्णविहत्ती अजहण्णविहत्ती सादियविहत्ती अणादियविहत्ती धुवविहत्ती अद्धवविहत्ती, एगजीवेण सामित्तं कालो अंतर सण्णियासो, णाणाजीवेहि भंगविचओ भागाभागाणुगमो परिमाणं खेचं फोसणं कालो अंतरं भावो अप्पाबहुगं चेदि एवं चउवीस अणिओगद्दाराणि एगेगउचरपयडिविहत्तीए
* उत्तरप्रकृतिविभक्ति दो प्रकारकी है, एकैक उत्तरप्रकृतिविभक्ति और प्रकृतिस्थान उत्तरप्रकृतिविभक्ति ।
६१७. जिसमें मोहनीय कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंका अलग अलग कथन किया जाता है उसे एकैक उत्तरप्रकृतिविभक्ति कहते हैं। तथा जिसमें मोहनीय कर्मके अट्ठाईसप्रकृतिक, सत्ताईस प्रकृतिक और छव्वीस प्रकृतिक आदि सत्त्वस्थानोंका कथन किया जाता है उसे प्रकृतिस्थान उत्तरप्रकृतिविभक्ति कहते हैं। इसप्रकार उत्तरप्रकृतिविभक्ति दो प्रकारकी ही होती है, क्योंकि इनके अतिरिक्त और किसी तीसरी विभक्तिका पाया जाना संभव नहीं है। ___ * उन दोनों भेदोंमेंसे एकैक उत्तरप्रकृतिविभक्तिके ये ग्यारह अनुयोगद्वार हैं । वे इसप्रकार हैं-एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल, और अन्तर, तथा नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगम, परिमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, सन्निकर्ष और अल्पबहुत्व ।
६१८. इसप्रकार एकैकप्रकृतिविभक्तिके ये ग्यारह अनुयोगद्वार होते हैं।
शंका-उच्चारणाचार्य ने एकैकप्रकृतिविभक्तिके समुत्कीर्तना, सर्व विभक्ति, नोसर्व विभक्ति उत्कृष्टविभक्ति, अनुत्कृष्टविभक्ति, जघन्यविभक्ति, अजघन्यविभक्ति, सादिविभक्ति, अनादिविभक्ति, ध्रुवविभक्ति, अध्रुवविभक्ति तथा एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, और सन्निकर्ष तथा नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभागानुगम, परिमाण, क्षेत्र,
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