________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पयडिविहत्ती २ ६१०५. सव्वविहत्ति-णोसव्वविहत्तियाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओषेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सव्वाओ पयडीओ सव्वविहत्ती। तदणं णोसव्वविहत्ती। एवं णेदव्वं जाव अणाहारएत्ति ।
६१०६. उक्कस्सविहत्ति-अणुक्कस्सविहत्तियाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओषेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सव्वुक्कस्साओ पयडीओ उकस्सविहत्ती। तदणमणुकस्सविहत्ती । उक्कस्सविहत्तीण वत्तव्वा, सव्वविहत्तीए विसेसाभावादो। अस्थि विसेसो
विशेषार्थ-अभव्य जीवोंके सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वको छोड़कर शेष छब्बीस प्रकृतियोंका सत्त्व है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके तीन दर्शनमोहनीय और चार अनन्तानुबन्धी इन सात प्रकृतियोंको छोड़कर शेष इक्कीस प्रकृतियोंका सत्त्व है और नहीं भी है। पर उक्त सात प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे नहीं है। वेदकसम्यग्दृष्टियों में जिसने चार अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना कर दी है तथा जिसने क्षायिकसम्यक्त्वको प्राप्त करते समय मिथ्यात्व और सम्यगमिथ्यात्वका क्षय कर दिया है, उसके उक्त छह प्रकृतियोंको छोड़कर शेष बाईस प्रकृतियोंका सत्त्व होता है । पर जिसने अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना न करके वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त किया है उसके सभी प्रकृतियोंका सत्त्व होता है। द्वितीयोपशम सम्यक्त्व चार अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनासे प्राप्त होता है और प्रथमोपशमसम्यक्त्व दर्शनमोहनीयके उपशमसे प्राप्त होता है। अतः उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके अनन्तानुबन्धी चारका सत्त्व है भी और नहीं भी है। पर शेष चौवीस प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे है। जिसने अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की है ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव मिश्रगुणस्थानमें भी जाता है, अतः इसके भी चार अनन्तानुबन्धीका सत्त्व है भी और नहीं भी है। पर शेष चौबीस प्रकृतियोंका सत्त्व नियमसे है। सासादनगुणस्थान अनन्तानुबन्धी चारमेंसे किसी एकके उदयसे होता है, अतः यहां सभी प्रकृतियोंका सत्त्व है।
इस प्रकार समुत्कीर्तना अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
६१०५. सर्वविभक्ति और नोसर्व विभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सभी प्रकृतियोंको सर्वविभक्ति और इससे कमको नोसर्वविभक्ति कहते हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये।
६१०६. उत्कृष्टविभक्ति और अनुत्कृष्टविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट प्रकृतियोंको उत्कृष्टविभक्ति और इनसे कमको अनुत्कृष्टविभक्ति कहते हैं।
शंका-उत्कृष्टविभक्तिका कथन नहीं करना चाहिये, क्योंकि सर्वविभक्तिसे इसमें कोई भेद नहीं है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org