Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासेहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ एगसमओ, उक्क वासपुधत्तं । एवं कम्मइय० ओहिणाण-मणपज्जव०-ओहिदसण. वत्तव्वं । वेउव्वियमिस्स० विहत्ति० जह० एगसमओ उक्क० बारस मुहुत्ताणि । आहार-आहारमिस्स० विहत्ति० जह० एगसमओ उक्क० पासपुधत्तं । अवगद० विहत्ति० जह० एगसमओ उक्क० छम्मासा । अविहत्ति० पत्थि अंतरं । है, वे निरन्तर पाये जाते हैं। तथा मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय
और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। इसी प्रकार कार्मणकाययोगी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और अवधिदर्शनी जीवोंके कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-उपर्युक्तमार्गणाओंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव सर्वदा पाये जाते हैं, क्योंकि औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोगका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानकी अपेक्षा, अवधिज्ञान और अवधिदर्शनका असंयतादि चार गुणस्थानोंकी अपेक्षा तथा मनःपर्ययज्ञानका प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। अतः उक्त मार्गणाओंमें मोहनीय विभक्तिवाले जीव सर्वदा हैं। बथा औदारिकमिश्न और कार्मणकाययोगमें मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका जो जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व बतलाया है उसका कारण यह है कि मोहनीय विभक्तिसे रहित तेरहवें गुणस्थानवाले जीवोंके कपाटसमुद्धातके समय औदारिकमिश्रकाययोग और प्रतर तथा लोकपूरण समुद्धातके समय कार्मणकाययोग होता है। और इनका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कहा है, अतः इन दोनों योगोंकी अपेक्षा मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका भी उक्त अन्तर प्राप्त होता है। तथा अवधिज्ञान, अवधिदर्शन और मनःपर्ययज्ञानके साथ चारों क्षपकोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। इन चारों क्षपकोंमें क्षीणकषाय गुणस्थान भी सम्मिलित है, अतः अवधिज्ञान आदि उक्त तीन मार्गणाओंकी अपेक्षा मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका भी उक्त अन्तर प्राप्त होता है।
वैक्रियिकमिअंकाययोगी मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी मोहनीयविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। इसका यह तात्पर्य है कि इन मार्गणाओंका जो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल है वही यहां इन इन मार्गणाओंकी अपेक्षा मोहनीय विभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल होता है।
अपगतवेदियोंमें मोहनीयविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। तथा मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका अन्तरकाल नहीं है।
विशेषार्थ-चार क्षपक गुणस्थानोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना बताया है, अतः इस अपेक्षासे अपगतवेदियोंमें मोहनीयविभक्तिवाले जीवोंका उक्त अन्तरकाल प्राप्त हो जाता है। अपगतवेदियोंमें मोहनीय अविभक्तिवाले जीवोंका अन्तर
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